सबरीमाला फैसला: न्याय के आगे झुका मंदिर प्रबंधन, कहा स्वीकार है अदालत का फैसला
सबरीमाला फैसला: न्याय के आगे झुका मंदिर प्रबंधन, कहा स्वीकार है अदालत का फैसला
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कोच्चि: केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को आज सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी है. शीर्ष अदालत के आदेशानुसार महिलाओं को पूजा से रोकना उनके मूल अधिकारों का हनन है, धर्म के नाम पर महिलाओं को उनके संवैधानिक अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की काफी प्रशंसा की जा रही है, महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने अदालत के फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि जब फैसला धर्म और समानता के बीच किया जा रहा हो तो जीत समानता की ही होनी चाहिए. 

सबरीमाला ही नहीं, इन मंदिरों में भी नहीं जा सकती महिलाएं

उन्होंने कहा अदालत का ये फैसला महिलाओं के लिए काफी अहमियत रखता है, क्योंकि पहले धर्म के नाम पर उन्हें मंदिर से दूर रखा गया था, लेकिन अब वे खुद ये तय कर सकती हैं कि वे मंदिर जाना चाहती है या नहीं. अदालत के इस फैसले के बाद मंदिर प्रबंधन भी इसे लागू करने की तैयारियां कर रही हैं, सबरीमाला के मुख्य पुजारी कंडारारू राजीवारू ने कहा है कि अदालत के इस फैसले से वे खुश नहीं है, लेकिन फिर भी अदालत का सम्मान करते हुए वे इस आदेश को स्वीकार करते हैं.

सबरीमाला मंदिर में अब महिलाएं कर सकेंगी प्रवेश

इससे पहले सबरीमाला के अय्यपा स्वामी मंदिर में 10 से लेकर 50 साल की महिलाओं का प्रवेश वर्जित था, मंदिर प्रबंधन का तर्क था कि  इस आयु में महिलाऐं रजस्वला धर्म से गुजरती हैं ऐसे में इस बीच ब्रम्हचारी अय्यपा स्वामी के मंदिर में उनका प्रवेश वर्जित है. लेकिन आज मुख्य नयायधीश ने यह कहते हुए महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की मंजूरी दे दी कि 10 से 50 वर्ष तक की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से रोकना संवैधानिक अधिकारों का हनन है, लैंगिक आधार पर इसमें कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है. 

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