100 रूपये की गोली घटाएगी 30% कैंसर का खतरा, TATA इंस्टीट्यूट का बड़ा दावा
100 रूपये की गोली घटाएगी 30% कैंसर का खतरा, TATA इंस्टीट्यूट का बड़ा दावा
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नई दिल्ली: देश में कैंसर के उपचार में अगुवा मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल सेंटर ने इस बीमारी के लिए एक दवा विकसित की है। यह दवा ₹100/टैबलेट होगी तथा रेडियोलॉजी अथवा कीमोथैरेपी से सही हुए मरीजों में कैंसर का खतरा कम करेगी। इसके लिए पिछले 10 सालों से शोध चल रहा था। प्राप्त एक रिपोर्ट के मुताबिक, संस्थान के शोधकर्ताओं एवं चिकित्सकों ने 10 सालों की मेहनत के पश्चात् यह दवा बनाने में सफलता पाई है। इससे कैंसर का उपचार करवा चुके मरीजों में दोबारा कैंसर की संभावना भी कम करेगी तथा कीमोथैरेपी या रेडियोथैरेपी से होने वाले साइड इफेक्ट भी 50 प्रतिशत कम करेगी।

अपने एक इंटरव्यू के चलते वरिष्ठ सर्जन राजेन्द्र बडवे ने इस दवा के विकास के विषय में बताया, ”इसशोध के लिए चूहों में मानवों कैंसर कोशिकाएँ डाली गईं, जिससे उन्हें कैंसर हुआ। तत्पश्चात, चूहों का रेडियोलॉजी, कीमोथेरेपी एवं सर्जरी के द्वारा गया। इसमें यह सामने आया कि मरने के पश्चात् कैंसर की कोशिकाएँ टूट जाती हैं, जिन्हें क्रोमैटिन कण कहा जाता है। ये कण खून के साथ शरीर के दूसरे भागों में जा सकते हैं तथा जब वे सामान्य कोशिकाओं में प्रवेश करते हैं, तो उन्हें कैंसर से संक्रमित कर सकते हैं।” वही इस समस्या के निदान के लिए शोधकर्ताओं ने उपचार से सही चूहों को रेस्वेराट्रोल और कॉपर (तांबा) मिश्रित दवा की गोलियाँ दी। यह दवा जल्दी ऑक्सीजन रिलीज करती हैं। इससे क्रोमैटीन कण मर जाते हैं। यह दवा दोबारा कैंसर होने से 50 प्रतिशत एवं पहली बार कैंसर होने से 30 प्रतिशत तक बचाव करेगी। इससे मुँह एवं गले के कैंसर के उपचार भी हो सकेगा। 

डॉक्टर बडवे ने बताया, “टाटा संस्थान के डॉक्टर तकरीबन एक दशक से इस दवा पर काम कर रहे थे। इस दवा के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) से अनुमतिली जा रही है। टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) के वैज्ञानिकों ने इसके लिए आवेदन किया है। अनुमति प्राप्त होने के पश्चात् यह जून-जुलाई से बाजार में उपलब्ध हो सकती है। यह दवा कैंसर के उपचार आसान करने में बहुत हद तक मदद करेगी।” उन्होंने बताया है कि जहाँ आज के वक़्त में कैंसर के उपचार में लाखों-करोड़ों रुपए लगते हैं, इस दवा का मूल्य मात्र ₹100/टैबलेट होगा। उन्होंने कहा है कि इसे अभी चूहों पर आजमाया गया है एवं मानवों पर इसका प्रभाव अगले 5 वर्षों तक देखा जाएगा।

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