घर की गुलाबी रौनक रूह अफ़ज़ा सिर्फ शरबत नहीं दवाई भी है...
घर की गुलाबी रौनक रूह अफ़ज़ा सिर्फ शरबत नहीं दवाई भी है...
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रूह अफ़ज़ा महज़ एक शर्बत का नाम नहीं एक त्योहार का नाम है, एक मौसम का नाम है . ठंडी तासीर का एक ऐसा शरबत जिस पर पूरी गर्मी टिकी हुई है . जिसपे रोज़ा और इफ़्तार टिका हुआ है . ये रूह को ठंडक देने वाली चीज़ है . पानी में मिलाया तो वो रूह अफ़ज़ा . कुल्फी में मिला दें तो कुल्फी, सिर्फ़ कुल्फी नहीं रह जायेगी . लस्सी में मिला दें तो लस्सी, सिर्फ़ लस्सी नहीं रह जायेगी.

हाफ़िज़ अब्दुल मजीद ने 1906 में हमदर्द दवाखाना के तहत इस चीज़ की शुरुआत की जो सौ से भी ज़्यादा सालों से मेहमानों, मौसमों, त्योहारों का स्वागत करता आ रहा है . जो तमाम झंझटों और बाज़ारू मुक़ाबले के दरमियान अपनी ख़ासियत और एतिमाद के दम पर आज भी लोगों में उतना ही पसंद किया जाता है.  रूह अफ़ज़ा का असल मतलब है जो 'आत्मा को ताजा करने वाला.'

गर्मियाँ शुरू होते ही गुलाबी रंग का गाढ़ी चीज़ शफ़्फ़ाफ़ डब्बे में, बाज़ार, घरों में दिखने लगती है . जो अमूमन बरसात तक दिखाई देती है . कोई थका हुआ आये और रूह अफ़ज़ा कि गिलास मुँह लगाते ही इसकी तेज़ और ताज़ा ख़ुश्बू से ही थकान दूर होने लगती है, गले को छूते हुए जब ये गुज़रे तो क्यों न कोई वाह कह दे.

इतना आज़ाद की किसी भी दूसरी पीने वाली चीज़ के साथ घुल मिल जाए . वैसे ही जैसे सब्ज़ियों में आलू . पानी, दूध, लस्सी, कुल्फी, कहीं मिलाइये और लुत्फ़ उठाइये . पीते रहिये, पिलाते रहिये . आप सभी को त्योहार और मौसम मुबारक़.

( पंकज विश्वजीत जी की फेसबुक वाल से)

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