ये आरक्षण की आग राष्ट्रीयता के हित में है
ये आरक्षण की आग राष्ट्रीयता के हित में है
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आरक्षण के लिए गुजरात में पाटीदारों का जबरदस्त आंदोलन हुआ, गुजरात यानि वह प्रदेश जिसका विकास मॉडल देश में लागू किया जा रहा है, वह सामाजिक विकास के झण्डे तले पाटीदारों /पटेलों के आरक्षण आन्दोलन से प्रत्यक्ष रूप से 3500 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ व अप्रत्यक्ष रूप से 15000 करोड़ के करीब है| 150 से ज्यादा बसे जला दी गई, कई शहरों में कर्फ्यू लगा, हजारो गाड़ियों में तोड़-फोड़ हुई, गोलिया चली लाठिया भांजी गई, सेना को सड़क पर उतरना पड़ा, कई पुलिस की गाड़िया व थाने आरक्षण की आहुति बन गए, पुलिसिया सिपाई व जनता अस्पतालों में पहुंच गये और कई लोगो को मौत के मुँह में जबरन धकेला दिया| आम जनता में आरक्षण के खिलाफ जबरदस्त तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली 100 में से 200 प्रतिशत विश्लेषकों एवं इतिहासकारो ने इसे राष्ट्र-विरोधी व समाज में अशांति फैलने का कारण बताया| इन सभी के बावजूद व सामान्य सोच एवं दिल को बिठा देने वाली, आखो से अश्रू धारा बहा देने वाली एवं शारीरिक शुब्धता का झटका लगाने वाली घटनाओ के बाद भी "विज्ञान" के आधार पर हमें कहना पड़ रहा है कि ये आरक्षण की आग अब राष्ट्रीयता के हित में है| 

आरक्षण किस प्रकार हमारी व्यवस्था के लिए जहर है उसके कई तार्किक एवं मार्मिक कारण प्रमाण सहित आये हम उन सभी को मानते है परन्तु समय के इस दौर में जो करवट ले ली वो राष्ट्रीयता को बलवती बनाती है | इसे यू समझे की आज जो पाटीदार / पटेल आरक्षण की मांग कर रहे है उन्होंने 30 वर्ष पूर्व आरक्षण के विरोध में बहुत बड़ा आंदोलन चलाया था क्यों की उस समय "खाम जातियों" को आरक्षण दिया गया था | उस वक्त भी करीबन 100 लोगो की मौत हुई थी | हम भी आप लोगो की तरह समझने लगे है कि आरक्षण हमारी व्यवस्था, लोकतंत्र, सामाजिक सदभाव के लिए बहुत खतरनाक है परन्तु अब "विज्ञान" कि भाषा में जब एक दवाई को बार-बार या लगातार ले तो वो फायदे के साथ-साथ दूसरे साइड इफ़ेक्ट डालती है जो समय के साथ ज्यादा नुकसानदायक होने लग जाती है | इसी प्रकार आरक्षण के लिए रोज रोज बन्द, रैलियां. तोड़-फोड़, पुलिस दमन सभी नुकसान दायक है और इनके लगातार जारी रहने से जो साइड इफ़ेक्ट होंगे वो हमारे लिए फायदेमंद है | 

हम उन्ही फायदों का जिक्र कर रहे है, आरक्षण के नाम पर लोगो कि सोच विकसित हुई मेरा, मेरे बच्चो का, मेरी बीबी का, मेरे परिवार का, मेरे रिश्तेदारो का इससे आगे बढ़कर मेरे समाज का हुआ है, लाखो लोग एक साथ जुड़ गये व रोड पर उतरने लगे जिसे कुछ महीनो पूर्व राजनैतिक पार्टिया लोकतंत्र का अधिकार बताती थी जब वे बन्द कराते थे | इसी प्रकार आरक्षण के नाम पर बिहार में कुर्मी, राजस्थान में गुर्जर, हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठा, आंध्रा और तेलंगाना में कम्मा व रेड्डी, कर्नाटक के वोकलिंगा आदि-आदि आंदोलन कर रहे है | विश्वास रखिये समय कि चाल पर और सोच के बढ़ते दायरे पर भविष्य में इस प्रकार के 250 -300 संगठन से ज्यादा इस देश में नहीं बनेगे | जिस दिन किसी एक मुद्दे (जैसे - बलात्कार, काला धन, बेरोजगारी, घूसखोरी आदि) पर यह 250 संगठन एक हो गये उस दिन "राष्ट्र" जीवित हो जायेगा | संसद के खुलने व बन्द होने का समय दायरा ही मीट जायेगा फिर वो कानून बनेगे जो जनता चायेगी न कि राजनैतिक पार्टियो के नेता | कई लोग समझते है इससे राष्ट्रीय सम्पति को जबरदस्त नुकसान हुआ पर समझने वाली बात यह है कि जिस जनता के प्रतिनिधि ही करोडो रुपये संसद को ठप करके पानी में बहा सकते है तो कानून कुछ नहीं कर पता तो इन प्रतिनिधियों कि मालिक "आम-जनता" को उनसे कम पैसो कि बर्बादी को किस कानून से रोका जा सकता है| 

पुलिस के दमन, लाठीचार्ज व लोगो कि पिटाई एवं कर्फ्यू के डर से यह रुक जायेगा तो बहुत बड़ी ना समझी है|  इसका जीवित सबूत अहमदाबाद में पटेल आन्दोलन कि रैली के मात्र एक सप्ताह के अन्दर गुजरात में ब्राह्मण-सोनी समाज ने आरक्षण के लिए अपनी आवाज बुलन्द करते हुए रैलियां निकली है | सरकार द्वारा पुलिस से पुलिस कि जांच व पुलिस कि रिपोर्ट से ही पुलिस को सजा का हाईकोर्ट का तरीका अंग्रेजो के ज़माने वाले कानून के अभी भी चलने का अहसास कराते है | कुछ वर्ष पूर्व जयपुर में डाक्टरों कि हड़ताल से तंग आकर जनता ने अपने व्यवसाही प्रतिष्ठानो के आगे डाक्टरों के वहाँ न आने व उन्हें सामान न देने के जो नोटिस लगाये वो आप भूले नहीं होंगे ...

समय के साथ पुलिस भी उसी दिशा में बढ़ रही है क्यों कि एक नहीं चार - चार शेरो की ताकत मायने रखती है परन्तु जंगल में और यदि शेर नरभक्षी हो जाये तो उसका क्या होता है आपको तो सविधान के दायरे वाली स्कूल की किताबो से पहले ही पठाया व समझाया जा चुका है | 

आंदोलन के 7 दिन में ही आप "राष्ट्रीयता" की नई चमक व विश्वास अखबारों, न्यूज़ चैनलों व सोशियल मीडिया में देख रहे है जिसमे जातियों को अंग्रेजो की तरह बाट-बाट कर अलग नहीं किया जा रहा है अपितु भूतकाल को खोद - खोद कर बताया जा रहा है की पाटीदार / पटेल पहले गुर्जर ही थे या उनकी उत्पति एक ही थी, महाराष्ट्र में पाटिल, मध्यप्रदेश में चौधरी, राजस्थान में बैसला व कसना, देल्ही व हरियाणा के भडाना-विधूड़ी, कश्मीर के गुज्जर सभी एक ही है जो प्रतिहार वंश, मुदल्ला गुर्जर, बड गुजर. लेवा, खारी इत्यादि -इत्यादि शामिल है | अंग्रेजो ने कैसे अलग - अलग जाती वर्ग बनाये, कैसे कर्म के आधार पर एकजुट को बात डाला | परिणाम जनता अब बट नहीं रही है वो आपस में एक होकर जुड़ रही है | इन आरक्षण के शांतिपूर्वक प्रदर्शन से कई लोग मर गये और यदि यह आगे भी चले तो कईयों की जिन्दगी लील जायेगे | यह अमानवीय, दुष्कृत और घोर अन्याय एवं अधर्म है हम मानते है इसके लिए सिर्फ यही कहा जा सकता है - "समय पर तय करले की हमको क्या करना है अन्यथा समय तय कर लेगा की हमारा क्या करना है " 

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