रामलला से दूर मजदूर की बात!
रामलला से दूर मजदूर की बात!
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लगता है कांग्रेस के युवराज भारतीय जनता पार्टी के ब्रांड प्रचारक और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के आगे बौने साबित होने के बाद राजनीति में काफी कुछ सीख गए हैं। इन दिनों राहुल उत्तरप्रदेश में प्रचार - प्रसार में लगे हैं और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए वोट बंटोरने में लगे हैं। लगता है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपने वोट बैंक को साधने में लगे हैं लेकिन कांग्रेस के निचले पायदान पर जाने के कारण अब वे अल्पसंख्यक के भी साथ बहुसंख्यक वर्ग को भी धर्म के साथ लुभाने में लगे हुए हैं दरअसल उत्तरप्रदेश यात्रा के दौरान राहुल अयोध्या पहुंचे।

मगर उन्होंने रामलला के मंदिर में पहुंचकर दर्शन नहीं किए बल्कि वे हनुमान गढ़ी पहुंचे जहां दर्शन करने के बाद हिंदू धर्म के एक महंत श्री ज्ञानदास महाराज से उन्होंने भेंट की। आखिर राहुल की किसान यात्रा में एक धार्मिक नेता से मिलने का क्या राजनीतिक प्रयोजन हो सकता है इस बात पर सभी का सवाल उठता है। तो दूसरी ओर अयोध्या जाने के बाद भी राहुल ने रामलला की ओर रूख नहीं किया। बल्कि उनका कार्यक्रम आंबेडकर नगर की एक दरगाह पर माथा टेकने का जरूर था। आखिर उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यकों की हितैषी पार्टियां बढ़ गई हैं सपा, बसपा के ही साथ एमआईएम का असर होने के कारण हाशिए पर जा चुकी कांग्रेस के लिए कुछ मुश्किल हो सकती है।

ऐसे में राहुल गांधी अपने लिए कुछ और वर्गों को जोड़ने में लगे हैं वे न तो हिंदू सवर्ण वोटर्स को अपने हाथ से जाने देना चाहते हैं और न ही अल्पसंख्यकों को यह जताना चाहते हैं कि कांग्रेस को उनकी फिक्र नहीं है। अयोध्या के विवादित मसले से किनारा करते हुए राहुल किसानों की बात करने में लगे हैं। दरअसल भाजपा पहले ही इस मसले को एक ओर रख चुकी है अब भाजपा के लिए यह मसला अपने आनुशंगिक संगठनों को खुश करने के लिए है। जबकि वह स्वयं विकास के आधार पर चुनावी मैदान में नज़र आती है।

ऐसे में रामलला को न छूकर कांग्रेस अपने लिए कुछ वोट प्रतिशत बढ़ाने की संभावना पर कार्य कर रही है। यूं भी बिहार में बीफ मामले से भाजपा को वोटों का काफी नुकसान उठाना पड ़ा था और शुरूआती मतदान के चरणों में आगे रही भाजपा बाद के चरणों के परिणामों में पिछड़ गई थी ऐसे में कांग्रेस इसे छूना नहीं चाहेगी। इस मसले को न छूकर एक तरह से राहुल यह संदेश भी देने में लगे हैं कि नफरत की राजनीति केवल धर्म आधारित कट्टरपंथी ताकतें ही करने में लगी हैं वे मजदूर, किसान और गरीब की बात करने निकले हैं।

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