Jun 25 2016 05:22 AM
मेरे वजूद की पर्तें भी
एक-एक कर खुल रही हैं,
दूर होना चाहता हूँ सबसे
पर तू है; कि मुझ में घुल रही है
शाम के मुहाने पर जैसे
रात का बसेरा बना है,
मेरा जीवन-पथ वैसे ही
तेरे होने की महक से सना है !
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