मुंबई। अब चिकित्सालयों में रोगी को भर्ती करने से पहले निजी चिकित्सालय प्रबंधन को मरीज के उपचार में होने वाले खर्च के बारे में बताना होगा। साथ ही रोगी से उसकी आर्थिक स्थिति को लेकर चर्चा करना होगी। यदि ऐसा किया जाएगा तो फिर मरीज को उसके चिकित्सा खर्च के भुगतान में होने वाली परेशानियों से बचाया जा सकेगा और, चिकित्सालय को भी आसानी होगी।मुंबई हाईकोर्ट ने अपने एक निर्णय में इस तरह के आदेश दिए हैं।
गौरतलब है कि, कई बार सामान्य मरीज महंगे चिकित्सालय में भर्ती हो जाते हैं मगर, बाद में उन्हें उपचार करवाने के लिए रूपयों की आवश्यकता होती है और फिर वे इस मामले में स्वयं को असमर्थ मानते हैं। इस मामले में न्यायालय ने कहा है कि, यह बात आपातकालीन सेवाओं में भर्ती किए गए रोगियों पर लागू नहीं होगी।
इस मामले में जस्टिस नरेश पाटिल और जस्टिस सांबरे ने कहा कि, यह एक संवेदनशील मसला है मगर इसका समाधान किए जाने की जरूरत है। न्यायालय ने सुझाव दिया कि एसोसिएशन आॅफ हाॅस्पिटल एंड मैनेजमेंट इंश्योरेंस कंपनीज़ को इस तरह की नीतियों को लेकर सामने आना चाहिए।
कई बार रोगी निजी चिकित्सालयों में मरीज को भर्ती करवाते हैं ,मगर रोगी के ठीक न हो पाने और उसकी मौत हो जाने की दशा में ऐसे मामले तक सामने आ चुके हैं जिनमें रोगी के परिजन के पास उसका शव ले जाने और चिकित्सालय का डिस्चार्ज बिल अदा करने के रूपए तक नहीं होते और, फिर परिजन मजबूरी में शव को अपने कंधे पर रखकर या फिर साइकिल पर ढोकर ले जाते हैं।
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