परिक्रमा पूजन का खास अंग है

परिक्रमा पूजन का खास अंग है। शास्त्रों में माना गया है कि परिक्रमा से पाप खत्म होते हैं। विज्ञान की नजर से देखें तो शारीरिक ऊर्जा के विकास में परिक्रमा का विशेष महत्व है।

भगवान की मूर्ति और मंदिर की परिक्रमा हमेशा दाहिने हाथ से शुरू करना चाहिए, क्योंकि प्रतिमाओं में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है। बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर इस सकारात्मक ऊर्जा से हमारे शरीर का टकराव होता है, जिसके कारण शारीरिक ऊर्जा कम होती है। जाने-अनजाने की गई उल्टी परिक्रमा हमारे व्यक्तित्व को नुकसान पहुंचाती है। दाहिने का अर्थ दक्षिण भी होता है, इस कारण परिक्रमा को ‘प्रदक्षिणा’ भी कहा जाता है।

इस मंत्र के साथ करें देव परिक्रमा-
यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च।
तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।

अर्थ : जाने अनजाने में किए गए और पूर्वजन्मों के भी सारे पाप प्रदक्षिणा के साथ-साथ नष्ट हो जाए। परमेश्वर मुझे सद्बुद्धि प्रदान करें।
शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं की परिक्रमा की संख्या अलग-अलग बताई गई है। यहां जानिए किस देवी-देवता की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए...

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