हिमशिखरों से साधना का अद्भुत सार लाए श्री महायोगी पायलेट बाबा
हिमशिखरों से साधना का अद्भुत सार लाए श्री महायोगी पायलेट बाबा
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उज्जैन : काले रंग के खुले केश, आंखों में अलग ही उत्साह, चेहरे पर साधना का प्रकाश पुंज और अपने आश्रम में श्रद्धालुओं को दर्शन देते संत। जब इस ओर नज़र पड़ती है तो जैसे सारी खोज दूर हो जाती है। जी हां, ऐसा लगता है जैसे बरसों की खोज पूरी हो गई। अब जीवन में कुछ अद्भुत होने वाला है। श्री महायोगी पायलेट बाबा। जिनके नाम में ही पायलेट शब्द जुड़ा है।

इनके दर्शन कर श्रद्धालु अपने जीवन को धन्य मानता है। हिमालय के दुर्लभ योगियों को छूने, मिलने और उनसे चर्चा करने का अवसर जैसे मिल गया है। इन दिनों सिंहस्थ 2016 के दौरान सिंहस्थ क्षेत्र में उजड़खेड़ा में उनका पांडाल लगा है। इसी कैंप में बाबा ठहरे हैं। क्षेत्र में श्री महायोगी पायलेट बाबा का भी कैंप लगा है।

इस कैंप में आते ही देवत्व का अहसास होता है। असीम शांति का अनुभव होता है। एक बड़े से पांडाल में बाबाजी शाम के समय श्रद्धालुओं से मिलते हैं। दिन में श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के बाबाजी अपनी कुटिया में होते हैं। ऐसे में कभी कुछ देर का विश्राम, कभी कैंप की व्यवस्थाओं पर चर्चा और कभी कुटिया में आने वाले श्रद्धालुओं से मेल - मुलाकात में बीत जाता है। यूं तो बाबाजी प्रवचन नहीं देते हैं श्रद्धालुओं से कुछ चर्चा कर लेते हैं। यह चर्चा ऐसी होती है जो श्रद्धालुओं को जीवन दर्शन प्रदान करती है।

श्री महायोगी पायलेट बाबा का सन्यास जीवन से पहले सेना से नाता रहा है। वे एक फायटर पायलेट थे। गृहस्थ जीवन में उनका नाम विंग कमांडर कपिल अद्वैत था। विमान उड़ाने के दौरान और युद्धक मोर्चों के दौरान उन्हें ऐसा अनुभव हुआ जैसे कोई शक्ति उन्हें निमंत्रण दे रही है। कई बार किसी अद्भुत शक्ति का अनुभव होने के बाद वे उसकी खोज में निकल आए।

सेना छोड़ दी। इसके बाद एक ही धुन थी हिमालय की कंदराओं में जाकर इस शक्ति के रहस्य को जानने की। उनके जीवन में हिमालय के योगी अवतार बाबा, हरि बाबा, हदियाकान बाबा जैसे साधुओं का प्रभाव था। वे हिमालय की कंदराओं में घूमे। वहां के जंगलों में साधुओं के साथ रहे।

कई बार नागा साधुओं के साथ भी रहे। साधना और तप को जानने के बाद उन्हें दीव्यानुभूति हुई। 33 वर्ष की आयु में उनका जीवन सन्यास की ओर मुड़ गया। हिमालय के क्षेत्र में उन्होंने विचित्र अनुभव किए। यहां पर कई ऐसे क्षेत्र देखे जहां पर रत्न, स्वर्ण, रजत भरा हुआ है। यहां के सरोवरों में स्नान करने वाली अद्भुत स्त्रियों को देखा। मगर वे विचलित नहीं हुए। वे अपने साधना पथ पर बढ़ते रहे।

योग और साधना का ज्ञान प्राप्त कर वे लोगों के बीच पहुंचे। यहां पहुंचने पर उन्होंने हिमालय की गोद में ही नैनीताल क्षेत्र में आश्रम स्थापित किया। इसे रानीखेत के आश्रम के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा वृंदावन और हरिद्वार में अपने आश्रम स्थापित किए। यही नहीं गंगोत्री के समीप सेंच कुमालती में और बिहार के सासाराम में भी आश्रम विकसित किए।इन आश्रमों के माध्यम से मानव को ईश्वर का संदेश दिया गया।

असीम शांति, आनंद और जीवन जीने की पद्धति से परिचित करवाया। उन्होंने लोगों के बीच ध्यान और साधना का अर्थ पहुंचाया। वे समाधिस्थ होने में बड़े ही निपुण रहे हैं। श्री महायोगी पायलेट बाबा जिन्होंने सूक्ष्म और शरीर में रहकर कई तरह के अनुभव लिए। स्वयं यह मानते हैं कि शरीर के बिना लोगों का कोई अस्तित्व नहीं है।

श्री महायोगी पायलेट बाबा से प्रेरणा लेकर अब उनकी शिष्याऐं और शिष्य भी साधना के तप की ओर बढ़ चले हैं। बाबा जी के शिष्यों में कैकोआईकावा माता जी और साध्वी श्री श्रद्धा गिरी माता जी को आध्यात्मिक चेतना के संवाहक के तौर पर जाना जाता है। माता कैकोआईकावा भी बहुत बार समाधि लेकर सूक्ष्म शरीर के अनुभव ले चुकी हैं। श्री महायोगी पायलेट बाबा के मार्गदर्शन में लोगों को दीव्यता का अनुभव हो रहा है। 

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