इन 5 आरतियों से संपन्न करें गणपति बप्पा की पूजा
इन 5 आरतियों से संपन्न करें गणपति बप्पा की पूजा
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हिन्दू धर्म में कोई भी शुभ कार्य आरम्भ करने से पहले प्रभु श्री गणेश की पूजा का विधान है। पौराणिक मान्यता है कि भगवान गणेश की पूजा करने से सारी विघ्न-बाधाएं दूर हो जाती हैं। वही इस बार गणेश चतुर्थी भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाएगी। अंग्रेजी महीने के अनुसार, यह सितंबर माह की 19 दिनांक को पड़ रही है। 10 दिन चलने वाले इस पर्व की धूम पूरे भारत में देखने को मिलेगी। इस के चलते भक्त गणपति की निरंतर 10 दिन तक पूरे विधि विधान से पूजा-अर्चना करेंगे। माना जाता है कि गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी का प्राकट्य हुआ था। मानते हैं कि इस दिन भगवान गणेश धरती पर आकर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। वही बिना आरती के गणेश जी की पूजा अधूरी मानी जाती है आइये यहाँ आपको बताते है गणेश जी की कुछ 5 आरती... 

गणेश जी की आरती:-
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥1॥

एकदन्त दयावन्त चार भुजा धारी ।
मस्तक सिन्दूर सोहे मूसे की सवारी ॥2॥
जय गणेश ॥

अन्धन को आँख देत कोढ़िन को काया ।
बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया ॥3॥
जय गणेश ॥

लडुअन कौ भोग लगे सन्त करें सेवा ।
पान चढ़ें फूल चढ़ें और चढ़ें मेवा ॥4॥
जय गणेश ॥

दीनन की लाज राखो शम्भु-सुतवारी ।
कामना को पूरा करो जग बलिहारी ॥5॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥

सुख करता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची (Shri Ganesh Aarti Marathi)
सुख करता दुखहर्ता, वार्ता विघ्नाची
नूर्वी पूर्वी प्रेम कृपा जयाची,
सर्वांगी सुन्दर उटी शेंदु राची
कंठी झलके माल मुकताफळांची ॥1॥

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति
दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति
जय देव जय देव ॥

रत्नखचित फरा तुझ गौरीकुमरा
चंदनाची उटी कुमकुम केशरा
हीरे जडित मुकुट शोभतो बरा
रुन्झुनती नूपुरे चरनी घागरिया ॥2॥

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति
दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति
जय देव जय देव ॥

लम्बोदर पीताम्बर फनिवर वंदना
सरल सोंड वक्रतुंडा त्रिनयना
दास रामाचा वाट पाहे सदना
संकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुरवर वंदना ॥3॥

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति
दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति
जय देव जय देव ॥

शेंदुर लाल चढायो अच्छा गजमुख को :-
शेंदुर लाल चढायो अच्छा गजमुख को
दोन्दिल लाल बिराजे सूत गौरिहर को,
हाथ लिए गुड लड्डू साई सुरवर को
महिमा कहे ना जाय लागत हूँ पद को ॥1॥

जय जय… जय जय…
जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता
जय देव जय देव ॥

अष्ट सिधि दासी संकट को बैरी
विघन विनाशन मंगल मूरत अधिकारी,
कोटि सूरज प्रकाश ऐसे छबी तेरी
गंडस्थल मद्मस्तक झूल शशि बहरी ॥2॥

जय जय… जय जय…
जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता
जय देव जय देव ॥

भावभगत से कोई शरणागत आवे
संतति संपत्ति सबही भरपूर पावे,
ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे
गोसावीनंदन निशिदिन गुण गावे ॥3॥

जय जय… जय जय…
जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता
जय देव जय देव ॥

आरति गजवदन विनायक की:-
आरति गजवदन विनायक की ।
सुर-मुनि-पूजित गणनायक की ॥टेक॥

एकदंत शशिभाल गजानन,
विघ्न विनाशक शुभगुण कानन,
शिव सुत वन्द्यमान-चतुरानन,
दुःख विनाशक सुख दायक की ॥ सुर० ॥

ऋद्धि-सिद्धि-स्वामी समर्थ अति,
विमल बुद्धि दाता सुविमल-मति,
अघ-वन-दहन, अमल अबिगत गति,
विद्या-विनय-विभव-दायक की ॥सुर०॥

पिङ्गल नयन, विशाल शुंडधर,
धूम्रवर्ण शुचि वज्रांकुश- कर,
लम्बोदर बाधा-विपत्ति-हर,
सुर-वन्दित सब विधि लायक की ॥ सुर०॥

आरति गजवदन विनायक की ।
सुर-मुनि-पूजित गणनायक की ॥

श्रीगनपति भज प्रगट पार्वती अंक बिराजत अविनासी:-
श्रीगनपति भज प्रगट पार्वती अंक बिराजत अविनासी ।
ब्रह्मा-विष्नु सिवादि सकल सुर करत आरती उल्लासी ॥1॥

त्रिसूलधरको भाग्य मानिकैं सब जुरि आये कैलासी ।
करत ध्यान, गंधर्व गान-रत, पुष्पनकी हो वर्षा-सी ॥2॥

धनि भवानि व्रत साधि लह्यो जिन पुत्र परम गोलोकासी ।
अचल अनादि अखंड परात्पर भक्तहेतु भव-परकासी ॥3॥

विद्या-बुद्धि-निधान गुनाकर बिघ्नविनासन दुखनासी ।
तुष्टि पुष्टि सुभ लाभ लक्ष्मि सँग रिद्धि सिद्धि-सी हैं दासी ॥4॥

सब कारज जग होत सिद्ध सुभ द्वादस नाम कहे छासी ।
कामधेनु चिंतामनि सुरतरु चार पदारथ देतासी॥5॥

गज-आनन सुभ सदन रदन इक सुंडि ढुंढि पुर पूजा-सी ।
चार भुजा मोदक-करतल सजि अंकुस धारत फरसा-सी॥6॥

ब्याल सूत्र त्रयनेत्र भाल ससि उन्दुरवाहन सुखरासी ।
जिनके सुमिरन सेवन करते टूट जात जमकी फाँसी ॥7॥

कृष्णपाल धरि ध्यान निरन्तर मन लगाय जो कोई गासी ।
दूर करें भवकी बाधा प्रभु मुक्ति जन्म निजपद पासी॥8॥

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