अस्ताचल सूर्य को देंगे अध्र्य, घाटो के किनारे गूंजेंगे छठी मैया के गीत
अस्ताचल सूर्य को देंगे अध्र्य, घाटो के किनारे गूंजेंगे छठी मैया के गीत
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नईदिल्ली। देशभर में दीपावली के बाद आने वाली कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को छठ पर्व मनाए जाने की तैयारियां की जा रही हैं। दरअसल यह पर्व सूर्य आराधना से जुड़ा हुआ है और प्रमुखतौर पर यह उत्तरभारतीयों व बिहारियों द्वारा मनाया जाता है लेकिन देश में सौहार्द और संस्कृतियों के समागम की भावना के चलते देशभर में बसे उत्तर भारतीय अपने - अपने रहवासी क्षेत्रों में वहां के निवासियों के बीच इस पर्व को मनाते हैं।

इस पर्व को लेकर कई परंपराऐं और मान्यताऐं जुड़ी हैं। इस बार इस पर्व को मनाने को लेकर व्यापक तैयारियां की जा रही हैं। लोगों द्वारा भाई दूज के बाद आने वाली चतुर्थी से ही त्यौहार के पूजन का क्रम प्रारंभ हो जाएगा। इस पर्व पर सरोवर या नदी के पानी में श्रद्धालु महिलाऐं आधे खड़े होकर अस्ताचल सूर्य को अर्थात सूर्यास्त के समय सूर्य को अध्र्य दिया जाता है। इस पर्व में सूप, गन्ने, फल, डाली आदि का उपयोग होता है कुछ स्थानों पर इस पर्व को डाला छठ भी कहा जाता है।

इस पर्व में खरना का आयोजन भी होता है। श्रद्धालु महिलाऐं गुड़ से निर्मित खीर, रोटी और फल आदि का भोग लगाती हैं। महिलाओं द्वारा पर्व के दौरान चार दिनों तक व्रत रखा जाता है। यह पूजन बेहद कठिन होता है। मान्यता के अनुसार छठ का प्रारंभ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है जो कि कार्तिक शुक्ल सप्तमी को यह पर्व समाप्त हो जाता है।

चतुर्थी को नहाय खाय के साथ और फिर पंचमी को खरना का निर्जला व्रत रखकर यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व पर गुड़ से निर्मित खीर, रोटी और फल का सेवन किया जाता है। पर्व के प्रमुख दिन अर्थात छठ पर महिलाऐं और अन्य जन नदी व सरोवर के किनारे एकत्रित होते हैं और एक सूप में फल आदि रखे जाते हैं इसी के साथ महिलाऐं पानी में आधे खड़े रहकर पूजन विधि संपन्न करती हैं और अस्ताचल सूर्य को अध्र्य दिया जाता है। इस अवसर पर छठी मैया के गीत भी गाए जाते हैं।

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