आज परिवर्तिनी एकादशी पर जरूर करें विष्णु चालीसा का पाठ, जानिए क्या है लाभ?
आज परिवर्तिनी एकादशी पर जरूर करें विष्णु चालीसा का पाठ, जानिए क्या है लाभ?
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आप सभी जानते ही होंगे भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को परिवर्तिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। ऐसे में इस साल परिवर्तिनी एकादशी का व्रत आज यानी 6 सितंबर 2022 को रखा गया है। जी हाँ और हम आपको बता दें कि इसे जलझूलनी एकादशी और पद्म एकादशी के नाम से जाना जाता है। दूसरी तरफ धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, चतुर्मास के दौरान पाताल लोक में क्षीर निंद्रा में वास कर रहे भगवान विष्णु इस दिन करवट बदलते हैं, इस वजह से इसका नाम परिवर्तिनी एकादशी है। कहते हैं इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना के साथ उनकी चालीसा का पाठ किया जाए तो सब कुछ अच्छा होता है और आर्थिक रूप से सम्पन्नता मिलती है। आइए आपको बताते हैं विष्णु चालीसा और इसे पढ़ने के लाभ। 

विष्णु चालीसा पाठ के लाभ-
* विष्णु चालीसा का पाठ करने से सुख,सौभाग्य, समृद्धि के साथ ही साथ धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
* विष्णु चालीसा का पाठ करने से सभी कष्टों व समस्याओं का निवारण होता है। 
* विष्णु चालीसा का पाठ करने से सकारात्मक मानसिक शक्ति की उत्पत्ति होती है। 
* विष्णु चालीसा का पाठ करने से मोक्ष मिलता है। 
* विष्णु चालीसा का पाठ करने से शक्ति व ज्ञान की प्राप्ति होती है।

विष्णु चालीसा

दोहा
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥

चौपाई 
नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥

सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।
तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत ॥

शंख चक्र कर गदा विराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे ।
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥

सन्तभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥

पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।
करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण ॥

धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा ।
भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा ॥

आप वाराह रूप बनाया, हिरण्याक्ष को मार गिराया ।
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया ॥

अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया ।
देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया ॥

कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया ॥

वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ।
मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया ॥

असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लड़ाई ।
हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई ॥

सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी ।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥

देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी ॥

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