इन जगहों पर पिंडदान करने का होता है विशेष महत्व
इन जगहों पर पिंडदान करने का होता है विशेष महत्व
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गया जी में पितृपक्ष के तहत पिंडदान शुरू हो गया है। जी हाँ और गयाजी में पिंडदान का विशेष महत्व है। जी दरअसल पितृपक्ष के दूसरे दिन पंचवेदी में कर्मकांड किया जाता है। आपको बता दें कि पिंडदानी ब्रह्मकुंड और प्रेतशिला में पिंडदान कर रहे हैं और इस पर्वत पर धर्मशीला है। कहा जाता है जिस पर पिंडदानी ब्रह्ना जी के पद चिन्ह पर पिंडदान करते है और पिंडदानी धर्मशीला पर सत्तू उड़ाकर पितर को याद करते है। ऐसी मान्यता है कि 'उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो'। सत्तू उड़ाते हुए पांच बार परिक्रमा करने से पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है।

इन जगहों पर पिंडदान करने का विशेष महत्व- जी दरअसल बिहार की धार्मिक नगरी गया जी में त्रैपाक्षिक कर्मकांड करने वाले पिंडदानी आज पिंडदान कर रहे हैं। इसी के साथ ही प्रेतशिला में पिंडदान करने का महत्व है। वहीं पितृपक्ष के दूसरे दिन पंचवेदी यानी प्रेतशिला, रामशिला, ब्रह्मकुंड, कागबली और रामकुंड में पिंडदान किया जाता है। पिंडदानी इन पांचों वेदियों पर पिंडदान करते हैं। इन पांचों वेदियों में प्रेतशिला सबसे प्रमुख पिंड वेदी माना गया है। आपको बता दें कि पितृपक्ष में फल्गु नदी के तट पर पिंडदान जारी है। प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध उन लोगों को किया जाता है, जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को हुआ हो। वहीं ऐसी मान्यता है कि इस दिन श्राद्ध कर्म करने वालों को धन-सम्पत्ति में वृद्धि होती है। इसी के साथ पूर्वज को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। दूसरी तरफ, प्रेतशिला को भूतों का पहाड़ कहा जाता है और इस पहाड़ पर आज भी भूत-प्रेतों का वास है। जहां हजारों की संख्या में पिंडदानी 676 सीढ़ियां चढ़कर पिंडदान करने पहुंचे हुए हैं। इस पर्वत पर पिंडदानी सत्तू उड़ाकर पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।

'उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो'- ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने कहा था कि इस पहाड़ पर बैठकर मेरे पद चिन्ह पर पिंडदान करना होगा। जिसके बाद पीतर को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलेगी। कहा जाता है इस पर्वत पर तीन स्वर्ण रेखा है। वहीं तीनों स्वर्ण रेखा में ब्रह्मा, विष्णु और शिव विराजमान रहेंगे। उसी समय से इस पर्वत को प्रेतशिला कहा गया और ब्रहा जी के पदचिह्न पर पिंडदान होने लगा। इसी पर्वत पर धर्मशीला है, जिस पर पिंडदानी ब्रह्ना जी के पद चिन्ह पर पिंडदान करके धर्मशीला पर सत्तू उड़ाते हैं 'उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो'। सत्तू उड़ाते हुए पांच बार परिक्रमा करने से पितर को प्रेतयोनि से मुक्ति मिल जाती है। प्रेतशिला पर भगवान विष्णु की प्रतिमा है।

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