इमरान सरकार ने सेना प्रमुख बाजवा के लिए दिखाया प्रेम, अदालत के फैसले को फेल करने के लिए किया ये काम
इमरान सरकार ने सेना प्रमुख बाजवा के लिए दिखाया प्रेम, अदालत के फैसले को फेल करने के लिए किया ये काम
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सेना प्रमुख जावेद बाजवा के प्रति पाकिस्‍तान सरकार का प्रेम खुलकर सामने आ गया है. यही वजह है कि मंगलवार को देश के सेना प्रमुख जावेद बाजवा के कार्यकाल विस्‍तार के लिए सेना नियमों में संशोधन किया है. पाकिस्‍तान सरकार ने सेना के नियमों 255 में संशोधन किया गया है ताकि सेना प्रमुख से संबंधित मामले में अदालत की अड़चनों को दूर किया जा सके.पाकिस्‍तान सरकार ने यह कदम तब उठाया जब सुप्रीम कोर्ट ने बाजवा के कार्यकाल बढ़ाने के फैसले को निलंबित कर दिया था.कोर्ट ने कहा था कि सेना के नियमों में ऐसा कोई प्राधान नहीं है. आखिर इमरान सरकार सेना प्रमुख के पद पर बाजवा को ही क्‍यों रखना चाहती है. क्‍या है इसके पीछे का सत्‍य. इसके साथ यह भी जानेंगे कि यह पूरे मामले की फसाद क्‍या है.

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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सीमा पर भारत और पाकिस्‍तान के बीच बढ़ते तनाव के कारण पाकिस्‍तान सरकार के लिए सेना प्रमुख बाजवा एक बड़ी जरूरत बन गए हैं. पाकिस्‍तान सरकार ने यह कदम तब उठाया था, जब जम्‍मू-कश्‍मीर पर केंद्र सरकार के सख्‍त रूख और अनुच्‍छेद 370 हटाने के बाद सीमा पर तनाव बढ़ गया था. इसके बाद सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल तीन वर्षों के लिए बढ़ा दिया था. इमरान सरकार को लगता है कि सीमा के हालात से निपटने के लिए बाजवा के अनुभव का लाभ लिया जा सकता है. यही उनके विस्‍तार का भारतीय लिंक है.उनका यह सेवा विस्‍तार रिटायर होने के म‍हज तीन महीने पहले आया था. पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री कार्यालय ने तब यह कहा था देश की अमन और शांति के लिए बाजवा के कार्यकाल को बढ़ाया गया है.

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि कि सुप्रीम कोर्ट ने सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा को तीन साल का कार्यकाल बढ़ाने के फैसले को निलंबित कर दिया। शीर्ष अदालत का यह फैसला 59 वर्षीय बाजवा के 29 नवंबर को सेवानिवृत्त होने से ठीक पहले आया. बाजवा के विस्तार के खिलाफ याचिका रायज राही नामक एक व्यक्ति ने दायर की थी, जिसने बाद में इसे वापस लेने के लिए एक आवेदन दिया. हालांकि, मुख्य न्यायाधीश आसिफ सईद खोसा ने वापसी की मांग को खारिज कर दिया था. गौरतलब है कि इमरान मंत्रिमंडल में शामिल 25 सदस्‍यों में केवल 11 ने सेना प्रमुख के कार्यकाल के विस्‍तार के पक्ष में मत दिया था, जिसे बहुमत का फैसला नहीं कहा जा सकता. 

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