लगता है। पाकिस्तान के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। भारत कई बार कहता रहा पाकिस्तान को वार्ता करना है तो कश्मीर राग छोड़कर आतंकवाद पर चर्चा करनी होगी। उसे छद्मरूप से भारत की धरती पर ठेला गया आतंकवाद रोकना होगा। अपने यहां चल रहे आतंकी ठिकानों को समाप्त करना होगा और ऐसे आतंकी जो भारत मांग रहा है भारत को देने होंगे लेकिन पाकिस्तान है कि अपनी मस्ती में मस्त होकर कश्मीर का राग अलाप रहा है। अब चीन के समर्थन से इतरा रहे पाकिस्तान को कौन समझाए तो भारत ने भी नहले पर दहला मारा और पीओके ही मांग लिया।
पाकिस्तान को क्या पता था भारत पाकिस्तान के इस राजनीतिक खेल में भारत इस तरह से अपना पत्ता चलेगा कि पाकिस्तान मरता क्या न करता की स्थिति में आ जाएगा। पाकिस्तान हर ओर से घिरा नज़र आ जाएगा। बलूचिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ नारेबाजी होने और वहां की अवाम का साथ भारत को मिल जाने से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान कुछ कमजोर नज़र आ रहा है। पाकिस्तान के ही साथ अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी यह सोचने पर मजबूर हो गई है कि क्या पाकिस्तान की कश्मीर की मांग जायज़ है।
क्या पाकिस्तान आतंकवाद का पौषक देश नहीं है। क्या असहिष्णुता का शोर भारत के लिए मचाना और उसकी निंदा करना उचित है जबकि भारत में रहने वाले अल्पसंख्यक अधिक सुरक्षित, खुश और अच्छे हालात में हैं जबकि पाकिस्तान में निवास करने वाले अल्पसंख्यक वहां के हालातों से परेशान हैं।
जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान इन बातों से घिर गया तो अपनी पार्लियामेंट में वह हिंदू विवाह कानून को लेकर चर्चा करने लगा। आखिर उस पाकिस्तान को अचानक अल्पसंख्यकों का हित कैसे नज़र आ गया जो कुछ समय पहले अपने ही देश में रहने वाले अपने अल्पसंख्यक नागरिकों को पिट रहा था लूट रहा था और वे मजबूर होकर शरणार्थियों के तौर पर भारत पहुंच गए।