अध्यादेश विवाद: कांग्रेस के समर्थन के बावजूद AAP को संसद में पटखनी दे सकती है सरकार, ऐसे हासिल होगा बहुमत
अध्यादेश विवाद: कांग्रेस के समर्थन के बावजूद AAP को संसद में पटखनी दे सकती है सरकार, ऐसे हासिल होगा बहुमत
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नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (AAP) द्वारा अध्यादेश मुद्दे पर कांग्रेस का समर्थन हासिल करने के बावजूद, केंद्र द्वारा उसे झटका दिया जा सकता है। दरअसल, सरकार वर्तमान में राज्यसभा में भी मजबूत स्थिति में है, अगर नवीन पटनायक की बीजू जनता दल (BJD) या जगन रेड्डी की YSR कांग्रेस पार्टी उसके (सरकार के) खिलाफ नहीं जाते हैं। 

बता दें कि,  किसी विरोधी उम्मीदवार के न होने के चलते, आज नामांकन बंद होने के बाद 11 राज्यसभा सीटों के लिए भाजपा के पांच सदस्यों और तृणमूल के छह सांसदों का निर्विरोध चुना जाना तय है। कांग्रेस को एक सीट का नुकसान होने और 30 सीटों पर सिमटने की संभावना है, जबकि भाजपा को एक सीट का फायदा होगा और उसकी संख्या 93 तक पहुंच जाएगी। 245 सदस्यीय राज्यसभा में सात सीटें 24 जुलाई के बाद रिक्त हो जाएंगी, जिसमे जम्मू में चार सीटें और कश्मीर, उत्तर प्रदेश में दो मनोनीत और एक रिक्त सीट शामिल है।

इस तरह जब अगले हफ्ते, जब मानसून सत्र चल रहा होगा, तो राज्यसभा में कुल सीटें घटकर 238 हो जाएंगी और बहुमत का आंकड़ा 120 होगा। वहीं, उस समय भाजपा और सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में सहयोगी दलों के पास 105 सदस्य होंगे। इसके अलावा भाजपा को पांच नामांकित और दो निर्दलीय सांसदों के समर्थन भी मिलने की पूरी संभावना है। इस तरह, सरकार के पक्ष में सदस्यों की संख्या 112 होगी, जो नए बहुमत के आंकड़े से 8 कम है। सरकार को मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा), जनता दल सेक्युलर (JDS) और तेलुगु देशम पार्टी (TDP) से भी समर्थन की उम्मीद है, जिनके सदन में एक-एक सांसद हैं। 

जहां तक विपक्ष की बात है, तो वो 105 सदस्य लेकर दिल्ली अध्यादेश का विरोध कर रहे हैं और सीएम अरविंद केजरीवाल का साथ दे रहे हैं।
राज्यसभा की परीक्षा पास करने के लिए केंद्र सरकार को BJD और YSRCP की मदद की जरूरत होगी, जिनके नौ-नौ सदस्य हैं। BJD ने कहा है कि वह तब फैसला लेगी कि जब यह विधेयक चर्चा और मतदान के लिए सामने आएगा। वहीं, YSRCP के जगन रेड्डी ने भी अभी तक अपने फैसले का खुलासा नहीं किया है। बता दें कि, गत वर्ष एक विवादास्पद बिल पर राज्यसभा में वोटिंग के दौरान दोनों पार्टियां (BJD और YSRCP) वॉकआउट कर गई थीं, जिससे सरकार को फायदा मिला था, क्योंकि बहुमत का आंकड़ा नीचे आ गया था।

यदि ये दोनों दल इस बार भी ऐसा ही करते हैं, तो भाजपा और उसके सहयोगी आराम से बहुमत के आंकड़े को पार कर जाएंगे, जो गिरकर 111 पर आ जाएगा। सरकार तभी संकट में होगी जब दोनों पार्टियां बिल के विरोध में वोट करेंगी, जिसकी संभावना नहीं दिखती। सरकार के पास दिल्ली अध्यादेश पर वोटिंग से पहले राज्यसभा में दो सदस्यों को नामांकित करने का विकल्प भी है, जिससे उसकी संख्या बढ़कर 114 हो जाएगी। 

क्या है अध्यादेश विवाद और इस पर क्यों बदली कांग्रेस की राय :-

बता दें कि, 11 मई के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसफर-पोस्टिंग सहित सेवा मामलों से जुड़े सभी कामकाज पर दिल्ली सरकार का कंट्रोल बताया था। वहीं, जमीन, पुलिस, और पब्लिक ऑर्डर के अलावा सभी विभागों के अफसरों पर केंद्र सरकार को कंट्रोल दिया गया था। ये पॉवर मिलते ही, केजरीवाल सरकार ने दिल्ली सचिवालय में स्पेशल सेक्रेट्री विजिलेंस के आधिकारिक चैंबर 403 और 404 को सील करने का फरमान सुना दिया और    विजिलेंस अधिकारी राजशेखर को उनके पद से हटा दिया था। लेकिन, केंद्र सरकार अध्यादेश ले आई और फिर राजशेखर को अपना पद वापस मिल गया। इसके बाद पता चला कि, दिल्ली शराब घोटाला और सीएम केजरीवाल के बंगले पर खर्च हुए करोड़ों रुपए की जांच राजशेखर ही कर रहे थे।

राजशेखर को पद से हटाए जाने के बाद उनके दफ्तर में रखी फाइलों से छेड़छाड़ किए जाने की बात भी सामने आई थी। एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमे राजशेखर के दफ्तर में आधी रात को 2-3 लोग फाइलें खंगालते हुए देखे गए थे।  ऐसे में कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित और अजय माकन द्वारा कहा जा रहा है कि, केजरीवाल इस अध्यादेश का विरोध दिल्ली की जनता के लिए नहीं, बल्कि खुद को बचाने के लिए कर रहे हैं। अजय माकन का तो यहाँ तक कहना है कि, अध्यादेश पर केजरीवाल का साथ देना यानी नेहरू, आंबेडकर, सरदार पटेल जैसे लोगों के विचारों का विरोध करना है, जिन्होंने कहा था कि, दिल्ली की शक्तियां केंद्र के हाथों में ही होनी चाहिए। माकन तर्क देते हैं कि, कांग्रेस सरकार के समय मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी वह शक्तियां नहीं मिली थी, जो केजरीवाल मांग रहे हैं। साथ ही इन दोनों नेताओं ने कांग्रेस से केजरीवाल का साथ न देने की अपील की है। हालाँकि, भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता बनाए रखने और 2024 के चुनाव में AAP का साथ लेने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने AAP की मांग स्वीकार कर ली है और अब कांग्रेस नेहरू-आंबेडकर, पटेल आदि के विचारों के खिलाफ जाकर AAP का साथ देगी। 

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