सीता जी द्वारा संतान को जन्म देने की घटना से संबंधित कई कहानियां प्रचलित हैं. कहा जाता है कि सीता जी के अयोध्या छोड़ देने के बाद श्रीराम ने राज्य तो बखूबी संभाला, लेकिन वे अंदर से दुखी रहने लगे. यह भी कहा जाता है कि श्रीराम, सीता जी की खटिया की ऊंचाई से भी निचे जमीन पर सोते थे.
जिस पुत्र को सीता जी ने जन्म दिया, उसका नाम ‘लव’ रखा गया. एक दिन सीता जी कुछ आवश्यक लकड़ियां लाने के लिए आश्रम से बाहर के पास स्थित जंगल जा रही थीं लेकिन उन्हें यह चिंता थी कि वे लव को कैसे लेकर जाएं. निकलते हुए उन्होंने वाल्मीकि जी को देखा उन्होंने उनसे लव पर नजर रखने को कहा. सिर हिलाते हुए जवाब में हां कहकर वाल्मीकि जी ने लव को उनके पास बैठाने के लिए कह दिया, लेकिन जैसे ही सीता जी कुछ आगे बढ़ीं तो उन्होंने देखा कि महर्षि का ध्यान केवल अपने कार्य में हैं और वे लव की ओर देख भी नहीं रहे.
इसलिए सीता जी ने लव को साथ ही लेकर जाने का निर्णय लिया, लेकिन जब उन्होंने लव को उठाया तो महर्षि ने यह दृश्य नहीं देखा. कुछ देर बाद जब महर्षि ने इधर-उधर देखा तो उन्हें लव दिखाई नहीं दिया और उन्हें यह भय हुआ कि हो ना हो लव कहीं चला गया होगा और किसी जानवर का शिकार हो गया होगा. इसी डर के कारण वाल्मीकि जी ने पास में पड़े कुशा को लिया और कुछ मंत्र पढ़ने के बाद एक ‘नया लव’ बना दिया.
यह लव हूबहू पहले जैसे लव की तरह ही था, कुछ समय के पश्चात जब सीता आश्रम लौटीं ने उन्हें देख महर्षि चकित रह गए. उनके पास लव को पहले से ही देख वे अपनी आंखों पर लेकिन जब सीता जी ने उस नए लव को देखा, तो वे अत्यंत प्रसन्न हुईं. कुशा के कारण जन्म होने की वजह से, उसका नाम ‘कुश’ रखा गया. और वह श्रीराम और सीता जी की दूसरी संतान के रूप में जाना गया.