संघ के दबदबे में दबे नितिन पटेल
संघ के दबदबे में दबे नितिन पटेल
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आखिरकार शुक्रवार को गुजरात राज्य के नए मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा कर दी गई है और इस पद की जिम्मेदारी विजय रूपानी को दी गई है, जबकि नितिन पटेल को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है। यदि यूं कहा जाये कि संघ के दबदबे में नितिन पटेल दब गये है तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। वस्तुतः नितिन पटेल को पूर्व में बतौर सीएम के रूप में पार्टीजनों ने ही प्रचारित किया था वहीं नितिन भी अपने आपको भावी सीएम मानकर मीडिया से भी मुखातीब हो चुके थे, परंतु भाग्य और समय कब कहां पलटी मार जाये और क्या हो जाये, इसका कुछ कहा नहीं जा सकता। यही नितिन पटेल के साथ भी हुआ। जिस विजय रूपानी का नाम किसी भी रूप में सीएम के लिये सामने नहीं आया, उन्हीं के सिर सीएम का ताज पहनाया गया है। 

कुल मिलाकर विजय रूपानी को संघ का आशीर्वाद मिला है, इस बात में कोई दोराय नहीं हो सकती है और फिर रूपानी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के भी चेहते माने जाते है, लिहाजा गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर उन्हें तो मौका मिलना ही था। रही बात नितिन पटेल की तो यह उनका भाग्य रहा कि उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाकर ’उपकृत’ किया गया, वरना यह भी हो सकता था कि उन्हें इस पद तक पहुंचने तक भी नहीं दिया जाता तो वे क्या कर लेते। भाजपा के लोग अनुशासन का दंभ भरने का दावा करते है, इसलिये चाहकर भी नितिन पटेल कुछ कर नहीं सकते थे। बावजूद इसके अब उन्हें इस बात से ही संतोष करना होगा कि गुजरात में नंबर दो की जिम्मेदारी तो मिली। अब यह बात दीगर है कि नितिन की चल-हल रूपानी और उनके सलाहकारों के समक्ष रहती है या नहीं या फिर उपमुख्यमंत्री पद का लालीपाॅप देकर उन्हें चुप रहने की सलाह दे दी जायेगी...! 

खैर विजय रूपानी अब गुजरात में किस तरह से अपनी पैठ जमाते है या फिर संघ अथवा मोदी या शाह की उम्मीदों पर खरा उतरते है, यह तो अभी भविष्य के गर्त में है, परंतु मोदी और शाह को जरूर अपने ऐसे खास व्यक्ति की जरूरत गुजरात में थी, जो न केवल भाजपा की भद को पिटने से बचाता रहे वहीं जिस तरह के हालात उत्पन्न हो चुके है, उन्हें भी खत्म करने में कामयाब सिद्ध हो सके। संभवतः यही कारण है कि रूपानी के नाम पर उंगली रखी गई है। गुजरात के हालात निश्चित ही भाजपा पचा नहीं पा रही है, क्योंकि हालातों के पीछे तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल की ’राजनीतिक कमजोरी’ रही है। चाहे हार्दिक पटेल का आंदोलन हो या फिर चाहे दलितों के साथ मारपीट का मामला ही क्यों न हो, आनंदीबेन पटेल अपने मुख्यमंत्रित्व पाॅवर का उपयोग संभवतः नहीं कर सकी या फिर अमित शाह के सीधे हस्तक्षेप के कारण वे अंदर से झकझोर गई और उन्होंने हथियार डाल दिये। 

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