आखिर क्यों अर्जुन ने की थी जलपरी नागकन्या उलूपी से शादी, जानिए रहस्य
आखिर क्यों अर्जुन ने की थी जलपरी नागकन्या उलूपी से शादी, जानिए रहस्य
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महाभारत और रामयण से जुडी कई ऐसी बातें हैं जो लोग नहीं जानते हैं. इसी तरह लोग अर्जुन की चौथी पत्नी के बारे में भी नहीं जानते हैं जो आज हम बताने जा रहे हैं आइए जानते हैं.

महाभारत के अनुसार - अर्जुन की चौथी पत्नी का नाम जलपरी नागकन्या उलूपी था. उन्हीं ने अर्जुन को जल में हानिरहित रहने का वरदान दिया था. महाभारत युद्ध में अपने गुरु भीष्म पितामह को मारने के बाद ब्रह्मा-पुत्र से शापित होने के बाद उलूपी ने ही अर्जुन को शापमुक्त भी किया था और अपने सौतेले पुत्र बभ्रुवाहन के हाथों मारे जाने पर उलूपी ने ही अर्जुन को पुनर्जीवित भी कर दिया था. विष्णु पुराण के अनुसार अर्जुन से उलूपी ने इरावन नामक पुत्र को जन्म दिया. इसी इरावन को भारत के सभी हिजड़े अपना देवता मानते हैं. उलूपी अर्जुन के सदेह स्वगारोहण के समय तक उनके साथ थी. कहते हैं कि द्रौपदी, जो पांचों पांडवों की पत्नी थीं, 1-1 साल के समय-अंतराल के लिए हर पांडव के साथ रहती थी. उस समय किसी दूसरे पांडव को द्रौपदी के आवास में घुसने की अनुमति नहीं थी.

इस नियम को तोड़ने वाले को 1 साल तक देश से बाहर रहने का दंड था. अर्जुन और द्रौपदी की 1 वर्ष की अवधि अभी-अभी समाप्त हुई थी और द्रौपदी-युधिष्ठिर के साथ का एक वर्ष का समय शुरू हुआ था. अर्जुन भूलवश द्रौपदी के आवास पर ही अपना तीर-धनुष भूल आए. पर किसी दुष्ट से ब्राह्मण के पशुओं की रक्षा के लिए लिए उन्हें उसी समय इसकी जरूरत पड़ी अत: क्षत्रिय धर्म का पालन करने के लिए तीर-धनुष लेने के लिए नियम तोड़ते हुए वह द्रौपदी के निवास में घुस गए. बाद में इसके दंडस्वरूप वे 1 साल के लिए राज्य से बाहर चले गए. इसी एक साल के वनवास के दौरान अर्जुन की मुलाकात उलूपी से हुई और वह अर्जुन पर मोहित हो गईं. ऐसे में वह उन्हें खींचकर अपने नागलोक में ले गई और उसके अनुरोध करने पर अर्जुन को उससे विवाह करना पड़ा. कहते हैं कि दोनों एक वर्ष तक साथ रहे. यह भी कहा जाता है कि अर्जुन ने नागराज के घर में ही वह रात्रि व्‍यतीत की. फिर सूर्योदय होने पर उलूपी के साथ अर्जुन नागलोक से ऊपर को उठे और फिर से हरिद्वार (गंगाद्वार) में गंगा के तट पर आ पहुंचे. उलूपी उन्‍हे वहां छोड़कर पुन: अपने घर को लौट गई. जाते समय उसने अर्जुन को यह वर दिया कि आप जल में सर्वत्र अजेय होंगे और सभी जलचर आपके वश में रहेंगे. अर्जुन और नागकन्या उलूपी के मिलन से अर्जुन को एक वीरवार पुत्र मिला जिसका नाम इरावान रखा गया. भीष्म पर्व के 90वें अध्याय में संजय धृतराष्ट्र को इरावान का परिचय देते हुए बताते हैं कि इरावान नागराज कौरव्य की पुत्री उलूपी के गर्भ से अर्जुन द्वारा उत्पन्न किया गया था.

नागराज की वह पुत्री उलूपी संतानहीन थी. उसके मनोनीत पति को गरूड़ ने मार डाला था, जिससे वह अत्यंत दीन एवं दयनीय हो रही थी. ऐरावतवंशी कौरव्य नाग ने उसे अर्जुन को अर्पित किया और अर्जुन ने उस नागकन्या को भार्या रूप में ग्रहण किया था. इस प्रकार अर्जुन पुत्र उत्पन्न हुआ था. इरावान सदा मातृकुल में रहा. वह नागलोक में ही माता उलूपी द्वारा पाल-पोसकर बड़ा किया गया और सब प्रकार से वहीं उसकी रक्षा की गयी थी. इरावान भी अपने पिता अर्जुन की भांति रूपवान, बलवान, गुणवान और सत्य पराक्रमी था.

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