मुंशी प्रेमचंद: जिसका साहित्य आज भी है प्रासंगिक
मुंशी प्रेमचंद: जिसका साहित्य आज भी है प्रासंगिक
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नईदिल्ली। अपने साहित्य से समाज के दलित, शोषित और गरीब वर्ग का मार्मिक चित्रण करने वाले मुंशी प्रेमचंद प्रेरक साहित्यकारों में से एक माने जाते हैं। उनके साहित्य में समाज के प्रत्येक वर्ग का चित्रण मिलता है। उन्होंने गोदान, रंगभूमि, कर्मभूमि आदि उपन्यासों का वर्णन किया है। ये उपन्यास समाज के प्रत्येक वर्ग का चित्रण करते हैं। मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस से समीप लमही गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम अजायब राय था। माता आनन्दी देवी थीं।

यूं तो, मुंशी प्रेमचंद का नाम धनपत राय था। उन्हें नवाब राय व मुंशी प्रेमचंद के नाम से जाना जाने लगा। मुंशी प्रेमचंद ने हिंदी कहानी व उपन्यास एक अनोखी परंपरा का विकास किया। उनके उपन्यास में समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व नज़र आता है। जब वे बचपन की उम्र में थे, तभी, उनके माता - पिता की मृत्यु हो गई थी। उन्होंने विधवा विवाह का समर्थन किया था।

व 1906 में उन्होंने बाल विधवा शिवरानी देवी से दूसरा विवाह किया था। मुंशी प्रेमचंद की तीन संतानें हुई थीं श्रीपत राय, कमला देवी श्रीवास्तव आदि। उनकी कई रचनाऐं जिनमें पंच परमेश्वर, बूढ़ी काकी, मानसरोवर, ईदगाह आदि बेहद लोकप्रिय रहीं।

प्रेमचंद का साहित्य आज के दौर में भी प्रासंगिक है। 31 जुलाई 1980 को उनकी जन्मशती के मौके पर 30 पैसे मूल्य का डाक टिकट जारी किया गया। गोरखपुर के जिस स्कूल में प्रेमचंद अध्यापन करवाते थे वहां प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई। वर्ष 1936 में प्रेमचंद बीमार हो गए। बीमारी की अवस्था में 8 अक्टूबर 1936 में उनका निधन हो गया। उन्होंने कई साहित्यप्रेमी जनता को अलविदा कहा।

 

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