यदि आपने भारतीय साहित्य को पढ़ा और प्रेमचंद को नहीं, तो यानी समुद्र-तट तक गए और पानी ही न देखा। प्रेमचंद भारतीय साहित्य की अविरल धारा के रस हैं जिनके बगैर उसके पानी में कोई स्वाद नहीं रह जाता। गोदान, गबन, निर्मला, कर्मभूमि, मानसरोवर जैसी कृतियां देने वाले प्रेमचंद न केवल हिंदी बल्कि उर्दू में भी लेखन किया करते थे। ऐसे महान व्यक्तित्व की जयंती पर हम आपके लिए लेकर आए हैं उनके कुछ अनमोल विचार:-
-खाने और सोने का नाम जीवन नहीं है, जीवन नाम है- आगे बढ़ते रहने की लगन
-चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुँचा सकता, जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझ कर पी न जाएं
-मैं एक मज़दूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं
-सौभाग्य उन्हीं को प्राप्त होता है, जो अपने कर्तव्य पथ पर अविचल रहते हैं
-दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका नहीं उसकी दौलत का सम्मान है
-विजयी व्यक्ति स्वभाव से, बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाती है।
-लिखते तो वह लोग हैं, जिनके अंदर कुछ दर्द है, अनुराग है, लगन है, विचार है। जिन्होंने धन और भोग विलास को जीवन का लक्ष्य बना लिया, वो क्या लिखेंगे?
-मनुष्य का मन और मस्तिष्क पर भय का जितना प्रभाव होता है, उतना और किसी शक्ति का नहीं। प्रेम, चिंता, हानी यह सब मन को अवश्य दुखित करते हैं; पर यह हवा के हल्के झोंके हैं और भय प्रचंड आधी है।
-मनुष्य को देखो, उसकी आवश्यकता को देखो तथा अवसर को देखो उसके उपरांत जो उचित समझा, करो।
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