फिल्म रिव्यु : बाहुबली
फिल्म रिव्यु : बाहुबली
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आज बहुचर्चित फिल्म बाहुबली दर्शको का मनोरंजन करने के लिए बॉक्स ऑफिस पर रिलीज हो चुकी है. एसएस राजामौली की फिल्म 'बाहुबली' मूल रूप से वैसे हिंदी फिल्म नहीं है. फिर भी यह हिंदी दर्शकों के लिए दक्षिण की एक सौगात है. इस पैमाने पर अब तक हिंदी में फिल्में नहीं सोची गई हैं. बाहुबली कंप्यूटर जनित (सीजी) एपिक फिल्म है. लेखक और निर्देशक की कल्पना की उड़ान फिल्म में प्रभावित करती है. 'बाहुबली' एक बहादुर बेटे की कहानी को बयां करती है. वह अपनी मां के साथ हुए अन्याय के समाधान के लिए साहस और बल का इस्तेमाल करता है.

एक राज्य में छल से बाहुबली को उसके अधिकार से बचपन में ही वंचित कर दिया जाता है. बाहुबली को जंगल के नागरिक पालते हैं. बड़े होने के साथ बाहुबली की जल पर्वत पर चढ़ने की इच्छा मजबूत होती जाती है. उसकी पालक मां उसे रोकने में सफल नहीं हो पाति है. जल पर्वत पर उसकी मुलाक़ात अवंतिका से होती है. दोनों के बीच प्रेम होता है, लेकिन फिल्म का लक्ष्य उनका पतन नहीं है. दोनों का ही लक्ष्य रानी देवसेना की मुक्ति और अधिकार हासिल करना है. छोटे प्रेम प्रसंग और एक-दो रोमांटिक गानों के बाद बाहुबली अपने मुख्य लक्ष्य में जुट जाता है.

यह बाहुबली के पराक्रम की गौरव गाथा है, जिसे राजामौली ने सीजी इफेक्ट से काफी प्रभावशाली बना दिया है. कलाकारों के लिए सीजी प्रभाव की फिल्मों में काम करना सहज नहीं होता. पर्दे पर हम उन्हें जिस माहौल में देखते हैं, शूटिंग के समय वह नदारद रहता है. एक प्रकार से ऐसी फिल्मों में उन्हें शून्य में ही अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल करना होता है. इस लिहाज से राणा और प्रभास की टाइमिंग अपेक्षित परिणाम लाती है. कुल मिलकर फिल्म आपका मनोरंजन करती है.

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