हम बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओं का संदेश सुनते और पढ़ते है, बेटी को देवी का स्वरूप मानते है, बेटियों के पैर पूजते है और कन्यादान का तो महत्व तो शास्त्रों में बहुत अधिक बताया गया है। कन्यादान से बड़ा दान तो माना ही नहीं गया है। बेटी के आने पर खुशियां दुगनी हो जाती है, क्योंकि बेटी भाग्य से ही प्राप्त होती है।
लेकिन हाल ही में कुछ ऐसे मामले सामने आये है, जिसमें या तो बेटी की हत्या कर दी गई या फिर बेटियों को हवस का शिकार बनाया गया। ताजा ऐसा मामला जयपुर का सामने आया है, जिसमें माॅं ने ही अपनी मासूम दूध मुंही बच्ची का गला घोंट दिया। जब माॅं ही बेटी की हत्यारन बन जाये तो फिर बेटी बचाओं जैसे संदेश को जीवन में उतारने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जिस माॅं ने अपनी कोख में बेटी को नौ माह तक रखा, उसे कष्ट के बाद जन्म दिया और चार माह तक उसे पाला पोसा, लेकिन बेटे की चाहत में बेटी को मौत की नींद सुला दिया।
माॅं का कलेजा इतना कठोर कैसे बन गया कि उसने खंजर से अपनी दूध मुंही बच्ची का कत्ल कर दिया। माॅं तो कोमल हृदय होती है, माॅं अपने खून पसीने से बच्चे को सींचती है तो फिर माॅं कुमाता कैसे बन गई। यदि बेटा ही चाहिये था तो, बेटी का कत्ल करने की क्या जरूरत थी। एक बेटी पहले से ही पाल रही थी, दूसरी को भी दुनिया देख लेने देती। वैसे भी जिस परिवार की महिला ने बेटी को मारा, वह परिवार जयपुर का काफी संपन्न परिवार माना जाता है।
संभवतः महिला के परिवार ने भी यह कभी कल्पना नहीं की होगी कि उनकी बहू ऐसा भी कर सकती है। खैर जो हुआ सो हुआ, महिला को उसके किये की सजा अवश्य ही मिलेगी, परंतु प्रश्न यह उठता है कि बेटियों पर जुल्म क्यों होता है। भले ही जमाना बहुत बदल गया है और बेटी तथा बेटी में फर्क नहीं समझने के दावे किये जाते है, बावजूद इसके बेटी और बेटे में फर्क करने में गुरेज नहीं किया जाता है।