मानसून का भूमध्यरेखीय पछुआ पवन सिद्धान्त क्या कहता हैं? जरा आप भी जानें
मानसून का भूमध्यरेखीय पछुआ पवन सिद्धान्त क्या कहता हैं? जरा आप भी जानें
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मानसून उत्पत्ति के भूमध्यरेखीय पछुआ पवन सिद्धान्त का प्रतिपादन फ्लोन महोदय ने किया था| उनका मानना था कि भूमध्यरेखीय पछुआ पवनें (Equatorial Westerlies) ही अत्यधिक ताप के कारण उत्तर-पश्चिमी भारत में निर्मित निम्न दाब की ओर आकर्षित होकर भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसूनी पवनों  के रूप में भारत में प्रवेश करती हैं.

भूमध्यरेखीय पछुआ पवनों की उत्पत्ति उत्तरी गोलार्द्ध की उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनों और दक्षिणी गोलार्द्ध की दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनों के भूमध्यरेखा पर आपस में मिलने से बनने वाले ‘अंतरा-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र के कारण होती है.इन पवनों की दिशा पश्चिमी होती है और इनके प्रवाह क्षेत्र को ‘डोलड्रम्स’ कहा जाता है.

फ्लोन महोदय के अनुसार एशियाई मानसून भूमध्यरेखीय क्षेत्र में बहने वाली स्थायी पवनों का ही संशोधित रूप है| गर्मियों में सूर्य के उत्तरायण के कारण तापीय विषुवत रेखा 300 उ. अक्षांश तक खिसक जाती है और इसके साथ ही अंतरा-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) भी उत्तर की ओर खिसक जाता है, जिसे उत्तरी अंतरा-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (NITCZ) कहा जाता है|  सर्दियों में सूर्य के दक्षिणायण के कारण अंतरा-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) भी दक्षिण की ओर खिसक जाता है, जिसे दक्षिणी अंतरा-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (NITCZ) कहा जाता है| गर्मियों में भारत के ऊपर बहने वाली उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें लुप्त हो जाती हैं.

गर्मियों के मौसम में भूमध्यरेखीय पछुआ पवनें भारतीय निम्नदाब की ओर चलने लगती हैं और यही पवनें भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी पवनों के रूप में प्रवेश करती हैं और मानसूनी वर्षा का कारण बनती हैं| अंतरा-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) को ही ‘मानसून द्रोणी’ (Monsoon Trough) कहा जाता है| सर्दियों में भारतीय निम्न दाब सूर्य के उत्तरायण  के कारण उच्च दाब में बदल जाता है और भारत में फिर से उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें प्रवाहित होने लगती हैं.

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