िन्दगी में हैं बहुत दुश्वारियां हम क्या करें।
बर्फ से है उड़ रहीं चिंगारियां हम क्या करें।।
था नहीं मालूम मोहब्बत में ऐसा होता है ।
दुश्मनों से हो गई हैं यारियां हम क्या करें।।
जानते हैं जहर है फिर भी नही दिल मानता।
कर रहे खुद मौत की तैयारियां हम क्या करें।।
करके ph.d. नही बन पाये हम चपरासी भी।
इस कदर हैं आजकल की डिग्रियां हम क्या करें।।
जीने का उसको नहीं हक जो न हमको मानता।
फैली है यूं धर्म की बीमारियां हम क्या करें।।
खेल है उल्टा यहां बिन वजन न कागज हिले।
दफ्तरों में फैली हैं मक्कारियां हम क्या करें।।
मैं जो लिखता हूं तो कहते हैं "अनिल" तू पागल है।
कौन पढ़ता है अब शेर-ओ-शायरियां हम क्या करें।।