सरल लोग, जिनकी दुनिया उनकी रोजी-रोटी के इर्द-गिर्द मंडराती रहती है, वे ईश्वर को निराकार नहीं मानते. उनका खयाल है कि ईश्वर हमारी तरह ही कहीं होगा और वहीं से हमारे ऊपर नज़र रख रहा होगा.अगर भगवान निराकार है, निर्गुण है तो वह सुपर ईश्वर है, उसके लिए हमने 'ब्रह्म' शब्द चुना है-'द एब्सल्यूट'. अगर भगवान साकार हैं, सगुण हैं तो उनके लिए ईश्वर शब्द चुना है.
ब्रह्म का केवल बोध किया जासकता है. यही बोध आध्यात्मिकता की पराकाष्ठा होगा, जिसे हम परमतत्व या अंतिम सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं. लेकिन सगुण ईश्वर के साथ हम रिश्ता जोड़ सकते हैं. यहां ईश्वर हमारे बहुत करीब आ जाता है और हम उसे थोड़ा नीचे ले आते हैं.
जब ईश्वर थोड़ा और नीचे आता है तो अवतार के रूप में आ जाता है- कभी राम बनके, कभी श्याम बनके.ईश्वर को अगर वाणी में व्यक्त करें तो वह 'ऊँ' होगा. अगर आंखों से देखने वाली किसी ऑब्जेक्टिव चीज के रूप में व्यक्त करें तो वह प्रकाश होगा. यहां तक तो सब ठीक होगा, लेकिन जो निराकार हो, जिसका कोई आकार ही नहीं है.
हमारी आध्यात्मिक परंपरा में ध्यान या मेडिटेशन निराकार को प्रकट करता है. भारतीय आध्यात्मिकता की विशिष्टता हैं. इस तरीके को ही हम ध्यान या मेडिटेशन के नाम से जानते हैं.
अगर आप भगवान के करीबी शिष्यों में शामिल होना चाहते हैं तो आपको उनके निराकार स्वरूप का बोध करना पड़ेगा, जो आप केवल मेडिटेशन से हासिल कर सकते हैं.