पुण्यतिथि : साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
पुण्यतिथि : साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
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वंदे मातरम्, बंदे में था दम, वंदे मातरम्। ऐनक पहने लाठी ताने चलते थे वे शान से। कुछ इस तरह के गीत आपको अक्सर सुनने को मिलते होंगे। आखिर क्या था हाड़ - मांस के उस पुतले में जो पूरी दुनिया उनका लौहा मानती थी। वे लौह पुरूष नहीं कहलाए लेकिन राष्ट्रपिता कहलाए। उनके प्रभाव के आगे ब्रिटिश राज भी झुक गया। उनके सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं। जी हां, मोहनदास करमचंद गांधी यही उनका नाम था। महात्मा गांधी को बचपन में मोहन कहकर उनके माता पिता प्रेम से बुलाया करते थे। 

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था। उनकी माता बहुत ही धार्मिक महिला थी यही कारण था को मोहनदास पर भी माता के विचारों का प्रभाव पड़ा। सत्याग्रह के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार में मोहन का महत्वपूर्ण योगदान था। गुजरात की पृष्ठभूमि का उन पर व्यापक असर पड़ा। उन्हें महात्मा की उपाधि दी गई। उनके पिता करमचंद गांधी से प्रेरित होकर वे इंग्लैंड में बैरिस्टर की पढ़ाई करने गए।

यहां वकालत करने के बाद वे लौटे तो वे दक्षिण अफ्रीका चले गए। यहां से उनका जीवन परिवर्तित हो गया। दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने रंगभेद नीति का प्रभाव देखा। भारतीयों को जिस तरह से कालाकुली कहा जाता था उससे वे दुखी होते थे। उन्होंने भारतीयों की मदद के लिए कई तरह के कार्य किए। हालांकि वकालत उन्हें रास नहीं आई जब वे भारत लौटे तो उन्होंने वापस आकर वकालत की लेकिन वकालत में गांधी जी को झूठ बोलना अच्छा नहीं लगता था।

यहां वे भारतीय स्वाधीनता संग्राम के आंदोलन में कूद पड़े लेकिन उन्होंने सत्य, अहिंसा को अपना अस्त्र बनाया। वे अहिंसा के प्रशंसक थे। वे मानते थे कि अहिंसा से बड़े से बड़ा काम भी हो सकता है। महात्मा गांधी ने देश में अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिए आवश्यक कदम उठाया। यही नहीं उनका कहना था कि सभी वर्ग एक समान हैं। महात्मा गांधी ने देश की स्वाधीनता के लिए अंग्रेजी शासन को जड़ से हिलाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

इसका एक उदाहरण है वर्ष 1942 का असहयोग आंदोलन दरअसल असहयोग आंदोलन इस तरह का आंदोलन था जिसमें लोगों ने सरकारी नौकरियों, सरकारी विद्यालयों, सरकारी संस्थानों में प्रवेश, कार्य और सेवा का बहिष्कार किया। इसमें अंग्रेजी राज से किसी प्रकार का सहयोग नहीं रखा गया। आंदोलन बहुत प्रभावित था लेकिन जब विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई उसी दौरान चैरी चैरा में भीड़ ने थाने में हिंसा कर दी। हिंसा की इस घटना से गांधी जी ने अपना आंदोलन वापस ले लिया।

असहयोग आंदोलन लगभग अपने परिणाम पर पहुंच गया था लेकिन इसके वापस लिए जाने से देश का बड़ा नुकसान हुआ। इस आंदोलन ने अंग्रेजीराज की नींव हिलाकर रख दी। ब्रिटिश राज की नींव हिलाकर रख देने वाले महात्मा गांधी की 30 जनवरी 1948 को शाम करीब 5 बजे प्रार्थना सभा में नाथूराम गोड़से ने हत्या कर दी। गांधी जी को गोली मार दी गई। गांधी जी शरीर से तो पंचतत्व में विलीन हो गए लेकिन आज भी उनके सिद्धांत लोगों के भी प्रभावी हैं।

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