सत्याग्रह से दिया भारत को स्वाधीनता का बल
सत्याग्रह से दिया भारत को स्वाधीनता का बल
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मोहन दास करमचंद गांधी। जिसे आज भारत महात्मा गांधी के नाम से जानता है। जिसके चित्र सरकारी कार्यालयों, भारत की मुद्रा रूपए के नोटों और अन्य स्थानों पर नज़र आ ही जाता है। ऐसे महान व्यक्तित्व को लेकर कहा भी गया है कि एक समय में दुनिया महात्मा गांधी को याद करेगी और लोग आश्चर्य करेंगे कि धरती पर ऐसा हाड़ मांस का शरीर लिए कोई व्यक्ति हुआ भी था या नहीं। दरअसल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 में गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद गांधी था और उनकी माता पुतलीबाई एक धार्मिक महिला थीं।

महात्मा गांधी ने अक्सर उनसे रामायण और महाभारत के प्रसंग सुने थे। ऐसे में महात्मा गांधी के जीवन पर इनका असर हुआ था। महात्मा गांधी 1887 में मोहनदास मुंबई विश्वविद्यालय की मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण कर भावनगर स्थित सामलदास काॅलेज में पहुंचे। इसके बाद 1888 में वे जहाज से लंदन पहुंचे और वहां विधि का ज्ञान लिया। उनका इंग्लैंड दौरा काफी अच्छा रहा।

मगर वहां से लौटकर उन्होंने जब कानून का कार्य करने और बैरिस्टरी करने की शुरूआत की तो उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा। ऐसे में वे अपने एक परिचित के एक केस को लड़ने के लिए दक्षिण अफ्रीका चले गए। यहां पर उन्हें रंग भेद नीति और भारतीयों के साथ होने वाले भेदभाव का अनुभव हुआ। भारतीय फर्स्ट क्लास के रेलवे कंपार्टमेंट में सफर नहीं कर सकते थे।

ऐसे में जब वे इस कंपार्टमेंट की यात्रा कर रहे थे तो उन्हें बीच स्टेशन पर उतार दिया गया। यहां से उनका मन बदल गया। जब वे भारत पहुंचे तो यहां भी भारतीयों के साथ अंग्रेजों द्वारा किए जाने वाले व्यवहार के कारण उनका मन दुखी हुआ और वे भारतीय स्वातंत्र्य के संघर्ष में सक्रिय हो गए। वर्ष 1906 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में टांसवाल सरकार ने दक्षिण अफ्रीका की भारतीय जनता के पंजीकरण को लेकर एक ऐसा आदेश जारी कर दिया जिससे भारतीयों का अपमान होता था। भारतीयों ने सितंबर 1906 में जोहेन्सबर्ग में महात्मा गांधी के नेतृत्व में विरोध जनसभा का आयोजन किया।

जब इसका विरोध किया गया तो फिर बिना हिंसा के आंदोलन की शुरूआत हुई जिसे सत्याग्रह कहा गया। वर्ष 1917 से 1918 के दौरान बिहार में उन्होंने चंपारण में नील की खेती का दबाव बनाने पर किसानों को लेकर विरोध किया। उनहोंने सत्याग्रह के माध्यम से दांडी यात्रा भी की और नमक काननू तोड़कर अंग्रेजी राज को हिला दिया।

उन्होंने मिल मजदूरों की हड़ताल का समर्थन करते हुए वर्ष 1920 में असहयोग आंदोलन की शुरूआत की लेकिन वर्ष 1922 में इसने जोर पकड़ लिया। महात्मा गांधी ने अपने जीवन के अंतिम समय तक देश के लिए अपना योगदान दिया। उन्हें भारत विभाजन से दुख हुआ। वर्ष 1948 30 जनवरी को शाम के समय प्रार्थना सभा में जाने के दौरान महात्मा गांधी की गोली मारकर हिंदू कट्टरपंथी नाथूराम गोडसे ने हत्या कर दी।

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