आप सभी को बता दें कि शारदीय नवरात्रि इस बार 29 सितंबर से है. ऐसे में इस बार पहले दिन माँ शैलपुत्री का पूजन होना है और आज हम आपको बताने जा रहे हैं माँ शैलपुत्री के जन्म की कहानी.
माँ शैलपुत्री के जन्म की कहानी- एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं. सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं. शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं. ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है. सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी. सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया. बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे. भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है. दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे. इससे सती को क्लेश पहुंचा. वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया. इस कारण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया. यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं.
माँ का रूप - मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है और हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री. आपको बता दें कि इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं और इस देवी ने एं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है. इसी के साथ यह देवी प्रथम दुर्गा हैं और ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं.
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