नरक चतुर्दशी के दिन अपनाएं ये उपाय, नहीं होगी अकाल मृत्यु

नरक चतुर्दशी के दिन अपनाएं ये उपाय, नहीं होगी अकाल मृत्यु
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दीपावली के अवसर पर मनाया जाने वाला नरक चतुर्दशी, जिसे रूप चौदस या रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है, जो दीपावली से एक दिन पहले आता है। इस दिन का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है, जो जीवन में सकारात्मकता और उन्नति का प्रतीक माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से यमराज की प्रसन्नता, दीपदान और उबटन की परंपरा का पालन किया जाता है।

नरक चतुर्दशी का महत्व
यमराज की कृपा

नरक चतुर्दशी के दिन यमराज की कृपा प्राप्त करने के लिए विशेष उपाय किए जाते हैं। मान्यता है कि इस दिन घर के बाहर आटे से बने चतुर्वती दीपक जलाने से यमराज प्रसन्न होते हैं, जिससे परिवार में अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है। दीपक जलाने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे श्रद्धा पूर्वक निभाया जाता है।

रूप चतुर्दशी का नामकरण
पौराणिक कथा

रूप चतुर्दशी का नामकरण एक पुरानी पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया था। नरकासुर, जो कि एक आतंकवादी और दुष्ट राक्षस था, ने देवताओं और ऋषियों को परेशान कर रखा था। श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध करके देवताओं और ऋषियों को उसकी कैद से मुक्त किया और लगभग 16,100 स्त्रियों को भी मुक्त किया, जिन्हें उन्होंने अपनी पटरानी का दर्जा दिया। इसके बाद से ही रूप चौदस पर लोग खुद को संवारने की परंपरा निभाने लगे, ताकि उन्हें भी नए जीवन और पहचान का आशीर्वाद प्राप्त हो सके।

उबटन का विशेष महत्व
उबटन की प्रक्रिया

रूप चतुर्दशी के दिन उबटन का विशेष महत्व है। इस दिन प्रात:काल अरुणोदय के समय उबटन करना चाहिए। उबटन के लिए हल्दी, चंदन, सुगंधित द्रव्य और गुलाब जल का मिश्रण बनाया जाता है। यह वही प्रक्रिया होती है जो शादी के समय दूल्हा-दुल्हन के लिए की जाती है। महिलाएं इस दिन उबटन करने के बाद सरसों का तेल भी अपने शरीर पर लगाती हैं, जिससे उन्हें देवी रुक्मणी का आशीर्वाद मिलता है। मान्यता है कि जो महिलाएं इस दिन उबटन लगाती हैं, उनका दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल जाता है।

पूजा विधि
स्नान और पूजा की तैयारी

नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करके साफ कपड़े पहनने का विशेष महत्व है। इस दिन की पूजा विधि में यमराज, श्री कृष्ण, काली माता, भगवान शिव, हनुमान जी और विष्णु जी के वामन रूप की विशेष पूजा की जाती है। घर के ईशान कोण में इन सभी देवी-देवताओं की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए।

पूजा के समय, देवताओं के सामने धूप-दीप जलाना, कुमकुम का तिलक लगाना और मंत्रों का जाप करना चाहिए। इसके बाद, शाम के समय यमदेव की पूजा करने के लिए घर के दरवाजे के दोनों तरफ दीप जलाने का विधान है। यह दीप जलाकर परिवार के सदस्यों को यमराज की कृपा और सुरक्षा प्राप्त होती है।

दीपदान की परंपरा
नरक चतुर्दशी की रात को दीपदान की परंपरा भी महत्वपूर्ण है। यह प्रथा केवल यमराज के प्रति आस्था प्रकट करने के लिए नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और पापों से मुक्ति के लिए भी होती है। इस दिन दीप जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और सभी प्रकार के संकटों से सुरक्षा मिलती है।

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