1- व्याघ्र -यह स्फूर्ति व निरंतर कर्म करने का प्रतीक है। अत: माता देवी कुछ विशिष्ट रूपों में बाघ की सवारी करती हैं.
2- गरुड़- भगवती लक्ष्मी जब भगवान नारायण के साथ विचरण करती हैं तो वे विष्णुवाहन गरूड पर विराजमान होती हैं.
3- मोर- भगवान कार्तिकेय की परम शक्तिकार्तिकेयी मोर पर विराजती हैं। मोर सौंदर्य, लावण्य, स्नेह व योगशक्ति का प्रतीक है.
4 -गधा- यह तमोगुण का प्रतिमान है। इसलिए भगवती कालरात्रि ने इसे अपने वाहन के रूप में चुना. माता शीतला का वाहन भी गधा ही होता है.
5- बैल- बैल ब्रह्मचर्य व संयम का प्रतीक है। यह बल व सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति कराता है. इसलिए न केवल भगवती शैलपुत्री अपितु भगवान शिव नंदी की ही सवारी करते हैं.
6- हाथी- देवी विभिन्न रूपों में हाथी पर भी विराजमान होती हैं. अनेक लोकदेवियां हाथी पर बैठती हैं. तंत्रशास्त्र के अनुसार देवी का एक नाम गजलक्ष्मी भी है.
7- उल्लू - माता लक्ष्मी का वाहन उल्लू आध्यात्मिक दृष्टि से अंधता का प्रतीक है. सांसारिक जीवन मे लक्ष्मी यानी धन-दौलत के पीछे भागने वाला इंसान अत्मज्ञान रूपी सूर्य को नहीं देख पाता है.
8- हंस -देवी सरस्वती का वाहन हंस है. मोती चुगना उसकी विशेषता है। इन गुणों को अपनाकर ब्रह्म पद पाया जा सकता है.
9- शेर - माता की सबसे प्रिय सवारी शेर होती है .शेर पर सवार माता जब भक्तो को दर्शन देती है तो भक्तो की साडी मनोकामनाये पूरी हो जाती है .