हमारे इस भारत वर्ष में धर्म - कर्म के चलते व्रत और त्योहारों की काफी महत्वता होती है. जो मानव जीवन के लिए विकास की सीढ़ी प्रदान करती है, हमारे इस देश में बड़ी ही एकता के साथ इन त्योहारों को मनाने की परम्परा जन्म जन्मान्तर से चली आई है. और इस परम्परा को अपनाने से आज मानव सुखद और सम्पन्नता के साथ जीवन यापन कर रहा है.
हमारे ये धर्म-कर्म लगभग एक जैसे होते है बस उन्हें मनाने की परम्परा थोड़ा सी होती है .अलग-अलग प्रान्त में ये कुछ अलग अलग ढंग से मनाये जाते है. जिस तरह कुछ प्रांतों में हम देखते है. मकर संक्रांति का पर्व मनाते है तो कुछ प्रांतों में लोग लोहड़ी पर्व के रूप में मनाते है. यह लोहड़ी पर्व पंजाब व जम्मू-कश्मीर आदि स्थानों पर बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है. और इस पर्व की बहुत ही अधिक महत्वता होती है . इस वर्ष इस लोहड़ी पर्व को दिन बुधवार 13 जनवरी, को मनाया जाएगा और इस दिन भक्त जान बड़ी ही उत्सुकता के साथ इस पर्व को मनायेगें , भक्तों की टोली इस पर्व को लेकर झूम उठेगी . यह लोहड़ी हंसने-गाने, एक-दूसरे से मिलने-मिलाने व खुशियां बांटने का उत्सव है.
कुछ इस तरह से दिखती है लोहड़ी पर्व की उत्सुकता -
यह पर्व विशेष रूप से मकर संक्रांति के एक दिन पहले ढलते सूरज के बात घरों के बाहर लोग बड़े-बड़े अलाव . लोग इन बड़े बड़े अलाव को जलाकर जलाकर मनाते है.चारो तरफ प्रकाश ही प्रकाश भर देते है. पुरुष और स्त्रियां इस दिन बड़े ही सुन्दर-सुन्दर वस्त्र धारण करके इस अलाव को जलाकर अग्नि देव की बड़े ही विधि विधान से पूजा पाठ करते है.
और तिल ,गजक न मेवा जैसे अनेकों व्यंजनों को भोग रूप में अग्नि देव को अर्पित करते है. और आपस में सबको प्रसाद रूप में बांटते है. इसके पश्चात वे इस अलाव के निकट आकर नृत्य जैसी अनेकों कलाओं का प्रदर्शन करते है. और आपस में बड़ी ही उत्सुकता से साथ मिल जुल कर झूम उठते है .
इस पर्व में मुख रूप से लोग भांगड़ा नृत्य करते है. नगाड़ों की ध्वनि के बीच यह नृत्य देर रात तक चलता रहता है। इसके बाद सभी एक-दूसरे को लोहड़ी की शुभकामनाएं देते हैं तथा आपस में मिल जुलकर एकता के सूत्र में सभी को बांधते है . इस पर्व का मुख्य उद्देश दूसरों के दुःख में उसकला साथ देकर उसके जीवन में खुशियाँ भरना .