मनीष सिसोदिया का पीछा नहीं छोड़ रहा शराब घोटाला, नहीं मिल पा रही जमानत, अब कोर्ट ने 22 नवंबर तक जेल भेजा !
मनीष सिसोदिया का पीछा नहीं छोड़ रहा शराब घोटाला, नहीं मिल पा रही जमानत, अब कोर्ट ने 22 नवंबर तक जेल भेजा !
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नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने आज गुरुवार (19 अक्टूबर) को शराब घोटाला मामले में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की न्यायिक हिरासत 22 नवंबर तक बढ़ा दी है। इससे पहले मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) से कहा था कि अगर दिल्ली की उत्पाद शुल्क नीति में बदलाव के लिए कथित तौर पर दी गई रिश्वत एक विशेष अपराध का हिस्सा नहीं है, तो संघीय जांच एजेंसी के लिए पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप साबित करना मुश्किल होगा। 

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी सहित न्यायाधीशों का एक समूह भ्रष्टाचार और धन शोधन मामलों के संबंध में सिसोदिया के दो जमानत अनुरोधों पर विचार कर रहा है। उन्होंने प्रवर्तन निदेशालय को सूचित किया कि वे यह नहीं मान सकते कि रिश्वत दी गई थी, और आरोपियों को कानूनी सुरक्षा दी जानी चाहिए जिसके वे हकदार हैं। जजों को अभी अपना फैसला सुनाना बाकी है। पीठ की यह टिप्पणी तब आई जब सिसौदिया की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अभिषेक सिंघवी ने कहा कि आप नेता के खिलाफ धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) मामले के तहत रिश्वत का कोई आरोप नहीं है।

बता दें कि, सिसोदिया को केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने 26 फरवरी को 'घोटाले' में उनकी कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार किया था। तब से वह हिरासत में हैं। ED ने तिहाड़ जेल में पूछताछ के बाद 9 मार्च को CBI की FIR से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में सिसौदिया को गिरफ्तार किया था। सिसोदिया ने 28 फरवरी को दिल्ली कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। 

क्या है दिल्ली शराब घोटाला:- 

दरअसल,  दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने 17 नवंबर, 2021 को नई शराब नीति लागू की, पार्टी के तमाम नेता इस नीति की जमकर तारीफें कर रहे थे। लेकिन, जैसे ही इस आबकारी नीति पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और CBI जांच के आदेश हुए, तो सितंबर 2022 के अंत में केजरीवाल सरकार ने इसे फ़ौरन वापस ले लिया। इससे ही आशंका गहराने लगी थी कि, जब केजरीवाल सरकार कह रही है कि, आबकारी नीति में कोई घोटाला नहीं किया गया, तो फिर उन्होंने जांच के आदेश होते ही अपनी नीति वापस क्यों ली ?  जांच एजेंसियों के मुताबिक, नई नीति के तहत मौद्रिक कारणों से थोक विक्रेताओं का मुनाफा मार्जिन 5 फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी कर दिया गया था।

जांच एजेंसियों ने आरोप लगाया है कि नई नीति के परिणामस्वरूप गुटबंदी हुई और शराब लाइसेंस के लिए अयोग्य लोगों को मौद्रिक लाभ दिया गया। हालाँकि, दिल्ली सरकार और सिसोदिया ने किसी भी गलत काम से इनकार किया है और कहा है कि नई नीति से राज्य के उत्पाद शुल्क राजस्व में वृद्धि होगी।

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