भौतिकता को छोड़ अध्यात्म की ओर मुड़े
भौतिकता को छोड़ अध्यात्म की ओर मुड़े
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आज आप देखते ही होंगे की हम इस संसार की भौतिकता में इतने लिप्त है. की अध्यात्म की ओर सोचते ही नहीं, हम यह नहीं जानते की जीवन से मुक्ति का सार है अध्यात्म ,ये सभी भौतिक वस्तुएं तो आज नही तो कल हमारे हाथ से छूटनी है, पर अध्यात्म तो ऐसा है जो मानव को इस जन्म के साथ साथ अगले जन्म तक जीवन में आनंद ,शांति प्रदान करता है .

आज आपने इस संसार  की भौतिक अवस्था को देखा होगा जैसे अगर आप कभी अपने बच्चे के जन्मदिन पर उससे पूंछते है. की आपको क्या उपहार चाहिए तो उसके पास एक लंबी सूची होती है । वह कई तरह के खिलौने, चाहता है . 

हम बड़े भी छोटे बच्चों से कम नहीं हैं। आज हम भी इस जगत में व्याप्त वस्तुओं को पाने के लिए यहां-वंहा भटक रहे है.मन की इच्छा को पूरा करने  के लिए पूरा दिन यहां -वंहा फिरते रहते है . वस्तुओं की प्राप्ति के लिए मानसिक टेंसन भी लेते है. ओर कई बार वस्तु प्राप्त करने के बाद भी अन्य कोई इच्छाओं और कामनाओं को लेकर यहां -वंहा भटकते रहते है .

हम मानते है की इस जगत में जीवन व्यतीत करने के लिए वस्तुओं की जरुरत पड़ती है. पर यह नहीं की हम उसमें इतने लिप्त हो जाएँ की अपने जीवन से अध्यात्म को दूर रखें.जीवन में सांसारिक क्रिया-कलाप के साथ अध्यात्म भी जरूरी है. यही आपको इस संसार से पार लगाता है . 

किसी ने कहा है -   भक्ति भाव एक ऐसी धारा, जो डूबे तो उतरे पारा , 

हमने देखा की हम भौतिकता में इतने उलझते जाते है. की आज हमें अपनों से मिलने का भी समय नहीं, हम विचार करें तो पाएंगे कि हम वस्तुओं के दास बन गए हैं। हम इस भौतिक संसार की जेल में बंद हों मानो। हम अपना ज्यादातर समय वस्तुओं के पीछे भागने में ही निकाल देते हैं .

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