जानें नवरात्रि में इन नियमों का महत्व
जानें नवरात्रि में इन नियमों का महत्व
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इंदौर: शास्त्रों के अनुसार वैसे तो साल में कुल चार नवरात्रि होती हैं परन्तु चैत्र और अश्विन महीने में आने वाली नवरात्रि का सबसे अधिक महत्व होता है. बसंत ऋतु में होने के कारण चैत्र नवरात्रि को वासंती नवरात्रि भी कहा जाता है. इस बार चैत्र नवरात्रि 18 मार्च से शुरू होगी जो 25 मार्च तक रहेगी नवरात्रि का पारण 26 मार्च को होगा.

नवरात्रि में माता के समक्ष कलश भी रखा जाता है जिसका अपना महत्व होता है. धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है. धारणा है कि कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र और मूल में ब्रह्मा स्थित होते हैं साथ ही ये भी मान्यता है कि कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं. इसलिए नवरात्रि के शुभ दिनों में कलश स्थापना की जाती है.

नवरात्रि में घर में ज्वारे या जौं बोए जाते हैं. मान्यता है कि जब सृष्टि की शुरूआत हुई थी तो पहली फसल जौं ही थी. इसलिए इसे पूर्ण फसल कहा जाता है और यह हवन में देवी-देवताओं को चढ़ाई जाती है. चैत्र नवरात्रि बसंत ऋतु का त्यौहार है और जौं की फसल भी इसी ऋतु में आती है यही कारण है कि इसे  देवी को अर्पित करते हैं. मार्कण्डेय-पुराण के अनुसार माँ दुर्गा के नौ रूप  शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी,सिद्धिदात्री है.

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