लाटू देवता मंदिर आज भी एक रहस्य बना हुआ है
लाटू देवता मंदिर आज भी एक रहस्य बना हुआ है
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दुनिया भर में ऐसे कई मंदिर-मस्जिद हैं जहां महिला-पुरूष के प्रवेश को लेकर आज भी भेदभाव किए जा रहे हैं, इससे अलग उत्तराखंड में एक ऐसा भी मंदिर है, जहां किसी भी श्रद्धालु को मंदिर के अंदर प्रवेश करने की इजाजत नहीं है। चमोली जिले में देवाल ब्लॉक के वांण में स्थित प्रसिद्ध लाटू देवता मंदिर आज भी एक रहस्य बना हुआ है।

मंदिर के कपाट हर वर्ष वैसाख पूर्णिमा के दिन खोले जाते हैं। इस दिन मंदिर के गर्भगृह में केवल पुजारी प्रवेश करते हैं। ऐसी मान्यता है​ कि मंदिर के अंदर शिवलिंग है जिसकी शक्ति से आंखों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। जिसके चलते पुजारी भी कपड़ा बांधकर मंदिर में प्रवेश करते हैं। 

स्थानीय लोग मानते हैं ईष्ट

लाटू देवता को मां नंदा का भाई माना जाता है। श्रीनंदा देवी राजजात यात्रा के दौरान वाण से लेकर होमकुंड तक राजजात की अगुवाई लाटू जी करते हैं। 2,450 मीटर ऊंचाई पर स्थित वाण गांववासी लाटू देवता को अपना ईष्ट मानते हैं। 

मंदिर के बाहर से होती है पूजा-अर्चना

किवदंतियों के अनुसार लाटू कनौज का गौड़ ब्राहाण था, जो भगवान शिव का परमभक्त था। भगवान शिव के दर्शन के लिए कैलाश जाते समय वाण गांव में उसने विश्राम किया। 

इस दौरान प्यास लगने पर उसने एक महिला से पानी मांगा, लेकिन गलती से उसने मदिरा पी लिया। दुखी लाटू ने अपनी जीभ काट ली और मुर्छित हो गया। बाद में भगवती लाटू की धर्म बहन की कृपा से लाटू को होश आया। जिसके बाद से यहां लाटू की पूजा की जाती है। लाटू देवता के मंदिर में हर दिन श्रद्धालु पहुंचते हैं, लेकिन वे मंदिर के बाहर से पूजा—अर्चना कर वापस लौट जाते हैं। 

नागराज करते हैं निवास

स्‍थानीय लोगों का मानना है कि मंदिर में नागराज अपनी अद्भुत मणि के साथ रहते हैं। जिसे देखना आम लोगों के वश की बात नहीं है। पुजारी भी नागराज को देखकर डर न जाएं इसलिए वे अपने आंख पर पट्टी बांधकर मंदिर के अंदर प्रवेश करते हैं।

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