सिंहस्थ कुंभ: उज्जैन तीर्थ की पंचक्रोशी यात्रा की महत्वता
सिंहस्थ कुंभ: उज्जैन तीर्थ की पंचक्रोशी यात्रा की महत्वता
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इस धार्मिक स्थल की पंचक्रोशी यात्रा लोक जीवन, धर्म और संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है. इस यात्रा का उल्लेख स्कन्दपुराण के अवन्तिखण्ड में मिलता है, जिसके अनुसार महाकाल वन के चारों दिशाओं में चार द्वार हैं – पूर्व में पिंगलेश्वर, पश्चिम में विल्वकेश्वर, उत्तर में दुर्दरेश्वर और दक्षिण में कायावरोहणेश्वर.

पंचक्रोशी यात्रा में तीर्थयात्रा उज्जैन की परिक्रमा करते हैं और फिर क्षिप्रा के तट पर विश्राम कर अष्टाविंशति तीर्थ  यात्रा पूरी करते हैं.यात्रा वैशाख कृष्ण पक्ष दशमी को शुरू होती है और अमावस्या को समाप्त होती है.

बहुत से भक्त उज्जैन पहुँचते हैं दिनभर की 25 तीर्थ यात्रा के बाद वे एक बार फिर नागचन्द्रेश्वर महादेव की पूजा करते हैं.यात्रा में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या कहीं अधिक होती है. तीर्थयात्री अपने साथ सारा जरूरी सामान ले जाते हैं और पूरी तरह आत्मनिर्भर होते हैं.

वे यात्रा में कई स्थानों पर रूकते हैं और भजन गाते हैं. ग्रामीण इस यात्रा को एक उत्सव के रूप में मनाते हैं.कई तीर्थयात्री यात्रा के दौरान सड़क के किनारे पत्थरों का ढेर लगाते देखे जा सकते हैं. यह मिथक है कि ऐसा करने से अगले जनम में उन्हें रहने को भव्य इमारतें मिलेंगी.उज्जैन की परिक्रमा के साथ 84 महादेवों की परिक्रमा भी कर लेते हैं। इन 84 महादेवों के दर्शन से 84 लाख योनियों में जन्म लेने से उनका छुटकारा हो जाता है.

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