कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है  'आप'का विश्वास
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है 'आप'का विश्वास
Share:

 कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !

मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!

मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है ! ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!

लाजमी है आज जिसके बारे में हम लिख रहे उन्हें कइयों ने सुना होगा. दरअसल ये कवी का कॉन्सर्ट है. कुमार विशवास सिर्फ कविताओं का पाठ ही नही करते है, वो कविताओं के पाठ को एक ऐसे मंच तक ले गए है जो पीढ़ियों को पीढ़ियों के साथ जोड़ रहा है. कविता को सरलता के साथ दिमाग में ही नही, दिलो में उतार रहा है. जिन शब्दों के साथ आज हम उनके जन्मदिन पर लिख रहे वह यही है कि - "काम सब गैर जरूरी है जो सब करते है! और ये कुछ नही करते है बस गजब करते है"!!

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाए कुमार विश्वास . आज आपका जन्मदिन है और आज के दिन यानि 10 फ़रवरी को आप पृथ्वी पर पाए गए थे. हालांकि इस पुरे षड़यंत्र में आपकी कोई योजना नही थी. इसमें न तो आपका हाथ था और न ही आपका कोई प्रयोजन था और न ही अपने इसके लिए विधिवत रूप से कोई आवेदन किया था. इसीलिए अर्ज़ करना चाहेंगे कि-

"कोई कविराज कहता है, कोई नेता बुलाता है!

वेट में है थोड़े हलके, वजन शब्दो से आता है!!

अमेठी के इलेक्शन की आज तुम बात मत करना! चाहे इंसान जो भी हो पाप सब से हो जाता है"!!

गोर फरमाइयेगा -दिल्ली में "आप" की सरकार बने 2 साल पूरे होने वाले है तो आगे की लाइन कुछ ऐसी है -

"के इस बीते साल में जनता के मन में कई कहानी है, ऑड इवन के चक्कर में गणित अच्छी हो जानी है! अरे मगर ओबामा खुद टेंशन लेते Wi -Fi के चक्कर में, छत पे तुम लटका दो झाड़ू, समस्या हल हो जानी है!!

किसी ज़माने में दीवानगी और पागलपन की बात करने वाला एक कवी आज खुद को एक गंभीर राजनेता के तौर पर पेश करने की कोशिश में जुटा है. पेशे से प्रोफ़ेसर, स्वभाव से कवी और अब राजनेता के तौर पर विश्वास ने एक लंबी छलांग लगाई है. साल 2010 में जब अन्ना हजारे के आंदोलन की नींव तैयार हो रही थी तब इस आंदोलन से युवाओ को जोड़ने का जिम्मा कुमार विश्वास को सौंपा गया था लेकिन , इस आंदोलन के साथ साथ कुमार विश्वास का कद भी बढ़ता चला गया. अन्ना आंदोलन ने एक साधारण कवी को सेलेब्रिटी बना दिया.

इकलौता कुमार- कुमार विश्वास एक ऐसे इकलौते कवी है जो कारपोरेट शो में बुलाए जाते है. जापान,वियतनाम और न्यूजर्सी समेत दुनिया के कई देशो में शो करते है.

विवादित टिपण्णी - कवी के तौर पर कुमार की ऑनलाइन टिप्पणियों से उपजे विवाद भी लंबे समय से उनका पीछा करते रहे है. चाहे इमाम हुसैन पर दिया उनका बयान हो या फिर दक्षिण भारत की नर्सो पर की गई टिपण्णी. भले ही विश्वास "आप" के हो लेकिन गाहे-बगाहे मोदी की तारीफ कर ही देते है. कुमार पर लिखना चाहे तो इतना कुछ है कि शब्दो का अकाल पड़ जाए लेकिन दोस्तों शब्दसीमा नाम की भी कोई चीज़ है.

कुमार विश्वास के वो चुटीलें संवाद जिन पर हंसे बिना नहीं रह सकते-

हिन्दी के टीचर- हमारे यहां, उत्तर प्रदेश में ऐसी पढ़ाई होती है कि पूरा देश पढ़ ले तो पढ़ ही नहीं पाए. तीसरी क्लास में हिन्दी ऐसी पढ़ाई हमको. जहां मैं पढ़ता था. मेरे गुरूजी थे राधेश्याम जी. अच्छा जो हिन्दी के टीचर होते हैं उनके नाम भी ऐसे होते हैं कि जैसे भगवान से रिश्तेदारी हो. महेश चंद, लक्ष्मीनारायण, राधेश्यामजी, महावीर प्रसादजी. तो उन्होंने जो हिन्दी पढ़ाई उसमें ऐसा अद्भूत प्रयोग था शब्दों का की मैं तीन दिन तक परेशान रहा. बोले-रामस्वरूप बीमार हुए, फलस्वरूप मर गये. मैंने कहा यार बिमार ये हुए तो मर ये क्यों गया? तीन दिन बाद मैं स्कूल गया. गुरूजी ने कहा कल क्यों नहीं आया. मैंने कहा-सर वो रामस्वरूप जी बीमार हुए फलस्वरूप मर गए. तो बोले मुर्ख, रामस्वरूप बिमार हुए फलस्वरूप मर गए, इसका मतलब ये है कि रामस्वरूप बीमार हुए परिणाम स्वरूप मर गये. मनकी ले-अब ये तीसरा मर गया भाई.

बाप की मान नहीं रहे - अच्चा नाइंथ में आ गई टिगोनोमेट्री. उसने भी बड़ा प्राण लिया साहब. एक्स बराबर मान लो. बाप की मान नहीं रहे, तेरी मान ले. हद हो गई यार. अच्छा एक्स बराबर भी कितना मान लो. पट्टा, एक्स दस हेक्टेयर में बदल जाता है.

आतंकवादी से परिचय - आपने कभी सुना मेरठ में बम विस्फोट. दादरी में आरडीएक्स पकड़ा गया. कभी नहीं. हो ही नहीं सकता. मैं एक बार विदेश में गया. जहां मुझे एक आतंकवादी मिला. परिचय हो गया. उसके मोबाइल में भी था कोई दीवाना कहता है. तो मैंने पूछा भाई साहब आप क्या काम करते है? तो उसने कहा भाई साहब हम टैरेरिज्म के कुटीर उद्योग में है. मैंने कहा, भई ये तो अच्छा है. आजकल बहुत फलफुल रहा है. तो आप से जो सांस्कृतिक हरकत करते हैं, हमारे यहां कभी क्यों नहीं करते है-मेरठ में. तो उसने कहा कि भाई साहब इसका एक ट्रिक होता है. पहले एक आतंकवादी जाकर भीड़ भरे चैराहे पर जाकर साइकल खड़ी करके आता है. आधे घंटे बाद दूसरा आतंकवादी उस साईकिल पर आरडीएक्स बांधकर आता है. आधा घंटे के बाद तीसरा आतंकवादी रिमोट ले जाकर विस्फोट करता है. हमने कई साईकिल खड़ी की. आधा घंटे बाद मिली ही नहीं. इसे कहते है उत्तर प्रदेश. जिसके पास कुछ न हो उत्तर जरूर है.

देश गड्ढा में इसलिए- मार्डन हिस्ट्री कैसे पढ़ाते थे. आप आनंद लीजिए. गांधीजी देश सेवा में 1922 में कुदे. नेहरू जी देश सेवा में 1928 में कुदे. भई, ये कूद क्यों रहे चले क्यों नहीं जाते. यार, कहीं चोट-वोट लग गई तो कितना नुकसान हो जाएगा. देश का. मुझे एक बार लालूजी फलाइट में मिले. उन्होंने मुझे बताया कि हम देशसेवा में 1976 में कूदा. अरे भाई साहब कूदा कहा, चला काहे नहीं गया. तो लालू जाी बोले, अबे बुडबक नहीं जानते है, देश गड्ढा में हैं तो कुद के सेवा करना पड़ता है.

भारत में नागा बाबा भी है -पोजेसनिंग, मार्केटिंग, ब्रांडिंग जैसे बड़े-बड़े शब्द सुनो लेकिन देसी रहेा. क्योंकि तुम ही थे जो कोक और पेप्सी वालों से पोजेसनिंग के डेढ़ लाख रूपये महिना लेते थे. एक लंगोटी वाले रामदेवजी आए. उन्होंने कोक को भी उसी कुंए में घुसा दिया जिससे आमिर खान निकाला करता था. ध्यान रखना ये तो लंगोटी वाला है वरना भारत में नागा बाबा भी होते है.

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -