जाने भगवान दत्तात्रेय के प्रेरक स्वरुप के बारे में
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भगवान दत्तात्रेय को तीन मुख, छह भुजा, चार श्वान, एक वृक्ष और गौ के साथ खड़ा दिखाया जाता है. उनके हाथ में डमरू है तो चक्र भी है. वे शंख धारण करते हैं तो हाथ में जपमाला भी है. कमंडल उनके हाथों में शोभा पाता है तो त्रिशूल भी शोभता है. उनके तीन मुख ब्रह्मा, विष्णु और शिव तत्व को बताते हैं.

उनका त्रिदेव स्वरूप हमारे अहं को समाप्त करता है और उनके हाथों में जो डमरू है वह निद्रा में लीन मनुष्यों को जगाने का काम करता है. अपने हाथ में रखे चक्र से वे भक्तों के सभी बंधनों को तोड़ देते हैं.

उनके हाथ में जपमाला है जो बताती है कि नाम जपने का महत्व सबसे बढ़कर है. उनके एक हाथ में कमंडल है और इसमें ज्ञान का अमृत है. इस जल से वे ज्ञान प्राप्ति की प्यास को शांत करते हैं और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति देते हैं. उनके पार्श्व में खड़ी गाय पृथ्वी व कामधेनु की प्रतीक है. कामधेनु जिस तरह हमें इच्छित वस्तुएं देती हैं उसी तरह गाय भी है.

चार श्वान- ये चार श्वान चारों वेदों के प्रतीक हैं. वे सत्य की रक्षा के लिए हमेशा उद्यत हैं और जहां भी ईश्वर जाते हैं उनके पीछे-पीछे जाते हैं. औदुंबर वृक्ष- माना जाता है कि इस वृक्ष स्वयं भगवान दत्तात्रेय के अंश उपस्थित हैं. जो भी इस वृक्ष को दंडवत प्रणाम करता है उसकी मनोकामना पूर्ण होती है.

मान्यता है कि दत्तात्रेय नित्य काशी में गंगाजी में स्नान के लिए आते हैं. यही कारण है कि काशी में मणिकर्णिका घाट की दत्त पादुका भक्तों के लिए पूजनीय स्थान है. इसके अलावा मुख्य पादुका स्थान कर्नाटक के बेलगाम में स्थित है. देशभर में भगवान दत्तात्रेय को गुरु मानकर उनकी पादुकाओं को नमन किया जाता है.

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