जानिए धुनी रमाने की प्रक्रिया और उसके चरण
जानिए धुनी रमाने की प्रक्रिया और उसके चरण
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साधुओं का जीवन कैसा होता हैं ये लोग कैसे रहते हैं ऐसे ही कई अनेक सवाल आपके भी दिमाग में होंगे. साधुओं का जीवन बहुत ही कठिनाई से भरा होता हैं. साधुओं को कई ऐसी प्रक्रियाओ से गुजरना पड़ता हैं जो बहुत ही कठिन होती हैं. इनमे से ऐसी ही एक प्रक्रिया धुनी रमाना साधू बनने की प्रक्रिया में ये एक बहुत ही कठिन प्रक्रिया हैं. धुनी रमाने की इस क्रिया में साधु कठोर तप करना पड़ता है और खुद के शरीर को तपाना पड़ता हैं. धुनी रमाने की प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होती हैं जो बहुत ही कठिन होती हैं. धुनी रमाने की पूरी प्रक्रिया करने में एक साधू को कम से कम 18 साल का समय लग जाता हैं. जब एक साधू धुनी रमाने के पुरे चरण विधिपूर्वक कर लेता हैं तभी वो एक पूर्ण साधू माना जाता हैं. 

धुनी रमाने की इस क्रिया साधू धुनी रमाने के लिए सर्वप्रथम एक स्थान पर बैठकर सबसे पहले अपने चारों ओर कंडे या उपलों का घेरा बनाता है. इसके बाद साधू अपने चारों ओर बनाये हुए कंडे के घेरों पर जलते हुए कंडे रखता हैं जिससे घेरों में रखे हुए सारे कंडे भी जलने लगते हैं. कंडों की जलने की वजह से साधू के आस-पास बहुत ही धुआं और गर्मी हो जाती हैं. जिसे साधू को सहन करना पड़ता हैं. और साधू को इसी गर्मी और धुएं के बीच अपनी साधना पूरी करनी पडती हैं. 

धुनी रमाने की क्रिया का पहला चरण 
पंच धुनी, धुनी रमाने की प्रक्रिया का पहला चरण है. इसके अंतर्गत साधु पांच जगह कंडे रखकर गोल घेरा बनाता है और फिर उन्हें जलाता हैं और उसके मध्य बैठकर अपनी तपस्या करता हैं.

धुनी रमाने की क्रिया का दूसरा चरण
सप्त धुनी, धुनी रमाने की क्रिया का दूसरा चरण हैं. इस चरण में साधु 7 जगह कंडे रखकर अपने चारों ओर घेरा बनाता है. और फिर इन सात जलते कंडों के बीच बैठकर अपनी तपस्या करता हैं.

धुनी रमाने की क्रिया का तीसरा चरण
द्वादश धुनी, धुनी रमाने की क्रिया का तीसरा चरण हैं. इसमें साधु 12 जगह जलते हुए कंडे रखकर गोल घेरे के बीच में बैठकर अपनी तपस्या पूरी करता हैं.

धुनी रमाने की क्रिया का चौथा चरण
चौरासी धुनी, इस चरण में साधु को 84 जगह कंडे रखकर घेरा बनाना पड़ता है. इस चरण में कंडों का घेरा बनाने के लिए साधू एक दूसरे साधू साथी की सहायता लेता हैं. और फिर इन जलते हुए कंडों के बीच बैठकर अपनी तपस्या करता हैं.

धुनी रमाने की क्रिया का पांचवां चरण
धुनी रमाने के इस चरण को कोट धुनी कहा जाता है. इस क्रिया में जलते हुए कंडो को  साधू के बिलकुल करीब रखा जाता हैं जिससे साधू को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता हैं. पास रखे हुए कंडे के धुएं और तपन के बीच साधू को अपना तप करना पड़ता हैं. 

धुनी रमाने की प्रक्रिया का अंतिम चरण
छठा और अंतिम चरण कोटखोपड़ धुनी है. ये धुनी रमाने की क्रिया का सबसे कठिन चरण है.  इसमें साधु को अपने सिर पर मिट्टी के पात्र में जलते हुए कंडे रखना पड़ता हैं जो बहुत ही तकलीफ देह रहता हैं किन्तु साधू को इसी प्रक्रिया में अपना ताप पूरा करना पड़ता हैं.

 

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