जानिए कैसे शुरू हुआ जितिया व्रत?
जानिए कैसे शुरू हुआ जितिया व्रत?
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आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखने की परंपरा है. इसे जितिया व्रत भी बोला जाता है. इस दिन माताएं अपनी संतान की दीर्घायु, आरोग्य एवं सुखमय जीवन के लिए बिना आहार एवं निर्जल रहकर यह व्रत रखती हैं. ये त्यौहार 3 दिन तक मनाया जाता है. सप्तमी तिथि को नहाय-खाय के पश्चात् अष्टमी तिथि को महिलाएं बच्चों की समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. तत्पश्चात, नवमी तिथि को भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर उनके मंत्रों का जाप किया जाता है. इस बार जितिया व्रत 6 अक्टूबर को रखा जाएगा. अष्टमी तिथि 6 अक्टूबर को प्रातः 6 बजकर 34 मिनट से लेकर 7 अक्टूबर को प्रातः 08 बजकर 08 मिनट तक रहेगी. 6 अक्टूबर को अभिजीत मुहूर्त प्रातः 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 33 मिनट तक रहेगा. आप इस अबूझ मुहूर्त में पूजा कर सकते हैं.

ऐसे शुरू हुआ जितिया व्रत:-
महाभारत युद्ध में पिता की मौत से नाराज अश्वत्थामा ने 5 लोगों को पांडव समझकर मार डाला था. कहा जाता हैं कि सभी द्रौपदी की 5 संतानें थीं. अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली. क्रोध में आकर अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में पल रहे बच्चे को मार डाला. ऐसे में प्रभु श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को पुन: जीवित कर दिया. प्रभु श्री श्रीकृष्ण की कृपा से जीवित होने वाले इस बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया. आगे चलकर यह बालक बाद में राजा परीक्षित के नाम से लोकप्रिय हुआ. तभी से संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए प्रत्येक वर्ष जितिया व्रत रखने की परंपरा को निभाया जाता है. जितिया व्रत मुश्किल व्रतों में से एक है. ​इस व्रत में बिना पानी पिए कठिन नियमों का पालन करते हुए व्रत पूर्ण किया जाता है. किन्तु कुछ विशेष बातों का ध्यान रखने की भी आवश्यकता है.

जीवित्पुत्रिका व्रत की सावधानियां:-
जितिया व्रत में लहसुन, प्याज और मांसाहार का सेवन वर्जित होता है. व्रत के चलते मन, वचन और कर्म की शुद्धता जरुरी  है. गर्भवती महिलाओं यग व्रत न रखकर सिर्फ पूजा कर लें तो बेहतर होगा. जिन महिलाओं को गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हैं, उन्हें भी यह व्रत नहीं रखना चाहिए.

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