चेन्नई: तमिलनाडु में NEET की परीक्षा के खिलाफ विधानसभा में सोमवार को एक बिल पारित किया गया। ये विधेयक एक 19 वर्षीय NEET अभ्यार्थी धनुष द्वारा ख़ुदकुशी करने के बाद सामने आया था। इस विधेयक के पेश होने के बाद भी राज्य में आत्महत्या का सिलसिला थमा नहीं है। खबर मिल रही है कि अरियालुर जिले में एक छात्रा ने परीक्षा में अच्छा न कर पाने के कारण आत्महत्या कर ली है। चिकित्सा क्षेत्र में अपना करियर बनाने का ख्वाब देखने वाले छात्र 12वीं के बाद से NEET परीक्षा को पास करना अपना सबसे बड़ा लक्ष्य मानते हैं। ये NEET की परीक्षा यानी राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा चिकित्सा क्षेत्र में जाने के लिए पास करनी अनिवार्य होती है।
वर्ष 2013 से इसकी आधिकारिक रूप से शुरुआत हुई थी। इसी के परिणाम देख छात्रों को केंद्र सरकार द्वारा संचालित तमाम मेडिकल संस्थानों में दाखिला दिए जाने का प्रावधान किया गया। अब तमिलनाडु विधानसभा में इसी NEET की परीक्षा पर एक बिल पारित किया गया है, जिसके बनने से सूबे में NEET परीक्षा का आयोजन ही नहीं किया जाएगा। राज्य के मेडिकल कॉलेजों में MBBS और BDS की डिग्री के लिए 12वीं कक्षा के अंकों के आधार पर दाखिला दिया जाएगा। सरकारी स्कूलों के स्टूडेंट्स को 7.5% हॉरिजेंटल रिजर्वेशन का फायदा भी दिया जाएगा। गौरतलब है कि तमिलनाडु विधानसभा में सीएम एम के स्टालिन ने इस विधेयक को पेश किया जिसका कांग्रेस, AIADMK, PMK और अन्य दलों ने समर्थन किया। हालाँकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस दौरान विरोध में रही और सदन से वॉकआउट कर दिया। विपक्ष के लोग इस दौरान काले बिल्ले लगाए नज़र आए। सबने स्टालिन सरकार के फैसले की आलोचना की। बता दें कि नीट परीक्षा के आधिकारिक रूप से लागू होने के बाद से इसके नुकसान और फायदे दोनों अक्सर गिनाए जाते रहे हैं। 2013 से पहले के संदर्भ में बात करें तो इस NEET एग्जाम को आरंभ करने का मकसद था कि छात्रों के अंदर से 7-8 एग्जाम देने का स्ट्रेस कम किया जा सके। नीट से पहले उनको प्रत्येक संस्थान के लिए अलग परीक्षा देनी पड़ती थी।
लेकिन, इस परीक्षा ने ये समस्या को खत्म किया और एक परीक्षा में अर्जित अंकों के बदौलत निर्धारित किया जाने लगा कि किस छात्र को कहाँ दाखिला मिलेगा। इन अंकों के आधार पर छात्रों को राज्य के मेडिकल कॉलेज में भी दाखिला लेने की बात है। ये परीक्षा लगभग 10 क्षेत्रीय भाषाओं में होती है। इसका आयोजन CBSE करवाता है और पाठ्यक्रम भी उसी आधार पर होता है। लोग इन बातों को सकारात्मक तरीके से भी लेते हैं और कुछ इसके नकारात्मक पक्ष पर बात करते हैं। यदि इस परीक्षा का विरोधी पक्ष देखें, तो पता चलता है कि कई राज्यों के कई स्कूलों में CBSE सिलेबस लागू नहीं होता, मगर वहां के विद्यार्थियों में मेडिकल परीक्षा उत्तीर्ण करने की इच्छा होती है। ऐसे में उन्हें अलग से तैयारी करनी पड़ती है। उसके लिए फीस भी चुकानी पड़ती है। हालाँकि, NEET एग्जाम ने छात्रों की सारी मेहनत एक एग्जाम के लिए केंद्रित कर दी। तमिलनाडु जैसे राज्य में NEET का विरोध शुरुआती दौर में भी हुआ था। कहते हैं कि वहाँ पहले भी 12वीं परीक्षा के आधार पर मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन दिया जाता था। किन्तु NEET के बाद ये चलन खत्म हो गया और छात्र व अभिभावक इस कदम से खफा हो गए। कुछ सुसाइड के मामले भी सामने आए और इसी मुद्दे पर DMK ने चुनावी वायदा भी किया।
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