EDITOR DESK: हुडदंगियों का सम्मान कितना उचित?
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एक  कहावत है, पढ़ोगे, लिखोगे, तो बनोगे नवाब, खेलोगे—कूदोगे, तो बनोगे खराब। लेकिन लगता है कि अब इस कहावत में तब्दीली करनी पड़ेगी। अब यह कहावत कहनी चाहिए कि 'पढ़ोगे, लिखोगे, तो फूल बरसाओगे, हुडदंग करोगे, तो सम्मान पाओगे।' अरे यह  हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि हमारा प्रशासन ऐसा कह रहा है। हुडदंगियों को सम्मान ​मिल रहा है और प्रशासनिक अधिकारी उनका सम्मान कर रहे हैं। अब एडीजी ने कांवड़ियों पर फूल बरसाए हैं, तो क्या कहा जाए? 
दिल्ली में कार फोड़ने का सम्मान उन पर पुष्प वर्षा कर दिया गया। सम्मान इतना अच्छा लगा कि पुष्प वर्षा के बाद उन्होंने जिसने सम्मान किया, उसी विभाग के कर्मचारियों पर लात—घूसे बरसाए। जैसे कह रहे हों कि अब नहीं करोगे सम्मान। करो अब हम सामने हैं, तो सामने से फूल बरसाओ, हमारे चरणों में बिछ जाओ। अब क्यों नहीं करते सम्मान। आकाश से पुष्प वर्षा और सामने से कुछ नहीं। बर्दाश्त नहीं किया जाएगा यह। यूं तो कांवड़िए भगवान शिव के भक्त हैं, लेकिन भक्ति से ज्यादा उनका कान फोड़ू म्यूजिक और उनका हुडदंग  ज्यादा चर्चा में रहता है। हर साल कई उदाहरण सामने आते हैं, जब कांवड़ियों के हुडदंग के चलते आम जनता को परेशानी हुई हो। 
अब यहां पर सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार में एक प्रशासनिक अधिकारी ने कांवड़ यात्रियों पर पुष्प वर्षा की, वह कहां तक उचित है? क्या इस तरह का व्यवहार प्रशासन या सरकार को शोभा देता है?  आखिर कब तक सरकार वोट बैंक की राजनीति के तहत  ऐसे हुडदंगियों को संरक्षण देती रहेगी? इन सवालों के जवाब ढूंढना बहुत जरूरी है, अन्यथा यह हुडदंगी भक्ति के नाम पर अपराध का ग्राफ बढ़ाते ही जाएंगे। सरकार को इन पर लगाम लगाने के उपाय करने चाहिए। 

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