नई दिल्ली : कश्मीरी पंडितों के एक समूह ने आज राष्ट्रीय राजधानी में ‘काला दिवस’के रूप में मनाया और 13 जुलाई 1931 को घाटी में ‘लूटपाट और नरसंहार’का दिन नाम दिया. यह विवाद श्रीनगर में आधिकारिक ‘शहीद दिवस’ समारोह से भाजपा के अलग रहने को लेकर उठा है.
पंडितों की घाटी में वापसी सुनिश्चित करने के लिए ‘ऑल पार्टीज माइग्रेन्ट को.ऑर्डिनेशन कमेटी’ (एपीएमसीसी) ने समान विचारधारा वाले सभी दलों के लिए एक समिति का गठन करने की मांग की है. ताकि उनके लिए सुनियोजित योजना बनाई जा सके.
इस सम्बन्ध में एपीएमसीसी के रविन्दर पंडित ने कहा ‘वे (अलगाववादी) कहते हैं कि यह शहीद दिवस है. लेकिन उस दिन वास्तव में हमारी मृत्यु हुई थी और हमें लूटा गया था.’ जंतर-मंतर पर एकत्र कश्मीरी पंडित समुदाय के कुछ सदस्यों ने भाषण दिए और बाद में मुफ्ती मोहम्मद सईद सरकार और अलगाववादियों के पुतले फूंके.
जम्मू कश्मीर में 13 जुलाई को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है और इस दिन आधिकारिक अवकाश होता है. वर्ष 1931 में इसी दिन श्रीनगर सेंट्रल जेल के बाहर डोगरा आर्मी की गोलीबारी में 21 प्रदर्शनकारी की जान चली गयी थी.