स्त्री के त्याग का प्रतीक है करवा चौथ व्रत
स्त्री के त्याग का प्रतीक है करवा चौथ व्रत
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कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को हिंदू मान्यता में बेहद शुभ माना जाता है। दरअसल इस दिन पति की लंबी उम्र की आयु की कामना के लिए सुहागिनें सुबह से ही व्रत रखती हैं। बाद में विधिवत पूजन और चंद्रदर्शन के बाद सुहागिनें यह व्रत खोलती हैं। इस दौरान महिलाऐं पानी तक नहीं पीती हैं। पंजाबी और माहेश्वरी समाज में इस व्रत का विशेष महत्व है। पंजाबी महिलाओं द्वारा इस पर्व को विशेष तरह से मनाया जाता है। सुहाग के प्रतीक इस पर्व पर सुहागिनी सामूहिक तौर पर एक गोल घेरे में बैठती हैं और फिर सात बार उनके द्वारा कथा सुनी जाती है।

जब कथा होती है तो अलग - अलग समय थालियों को घूमाया जाता है। पूजन की थाली की अदला - बदली होती है। ऐसे में हर महिला अपने पास आई अन्य महिला की थाली को जतन से रखती है। इस बार यह पर्व शुक्रवार को आ रहा है। रोहिणी नक्षत्र में इस पर्व के आने से यह पर्व और भी महत्वपूर्ण हो गया है। इस पर्व में यह दुर्लभ संयोग है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म नक्षत्र का समय भी रोहिणी कहा जा रहा है। शाम 4.57 पर यह नक्षत्र प्रारंभ हो रहा है।

इस दिन भगवान शिव - पार्वती  और कार्तिकेय स्वामी का पूजन भी होता है। यह व्रत सबसे पहले द्रोपदी ने किया था। इसमें मन के कारक देव चंद्रमा का पूजन किया जाता है। खास बात यह है कि कुंवारी कन्याओं द्वारा भी चंद्रमा को अध्र्य दिया जाता है। इस दिन महिलाऐं छलनी की रोशनी में चांद की चांदनी निहारती हैं और इस दिन के लिए विशेषतौर पर अपने रूप को संवारती हैं। पंजाबी समुदाय में सुनाई जाने वाली करवा चौथ व्रत कथा बेहद ही प्रभावपूर्ण है। जो कि स्त्री के त्याग को दर्शाती है। 

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