जाने जीतन राम मांझी का एक क्लर्क से सीएम बनने तक का सफर
जाने जीतन राम मांझी का एक क्लर्क से सीएम बनने तक का सफर
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पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में आया राम और गया राम का दौर जारी किया जा चुका है. हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के प्रमुख जीतन राम मांझी महागठबंधन से नाता तोड़कर JDU से हाथ मिलाने वाले है. मजदूरी से जिंदगी के सफर की शुरुआत कर डाक मंत्रालय में क्लर्क बने और राजनीति के मैदान में उतरकर सूबे की सत्ता के सिंहासन पर कब्ज़ा का रहे है. जीतन राम मांझी बिहार में दलित चेहरे के तौर जाने जा रहे है, लेकिन सियासत में अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए नीतीश कुमार से वो पुराने सारे-गले शिकवे और अदावतें भुलाकर एक बार फिर से एक साथ आने वाले है. 

80 के दशक में राजनीतिक सफर की आरंभ करने वाले जीतन राम मांझी कांग्रेस, RJD और JDU की राज्य सरकारों में मंत्री का पद संभाल लिए है. 6 बार विधायक रहे मांझी पहली बार कांग्रेस की चंद्रशेखर सिंह सरकार में 1980 में मंत्री बने थे और जिसके उपरांत बिंदेश्वरी दुबे की सरकार में मंत्री रहे. जिसके उपरांत नीतीश सरकार में मंत्री बने और 2014 में बिहार के सीएम के रूप में शपथ लेकर सबको चौंका चुके है.  नीतीश कुमार ने ही मांझी के सिर ताज सजा लिया है, लेकिन 8 महीने के उपरांत ही फिर से खुद ही छिना जा चुका है. इसके उपरांत मांझी ने खुद की पार्टी बनाई और बीजेपी और महागठबंधन से हाथ मिलाया, लेकिन दोनों खेमे के साथ कामयाब नहीं रहे तो अब JDU के साथ अब फिर कदम ताल करने का मन बना चुके है. 

दशरथ मांझी की तस्वीर पर फूल चढ़ाते जीतनराम मांझी:  जानकारी के अनुसार बिहार के गया जिला के खिजरसराय के महकार गांव के मुसहर जाति में  6 अक्टूबर 1944 को जीतन राम मांझी का जन्म हो गया है. मुसहर जाति के लोग चूहा पकड़ने और उन्हें खाने के लिए जाने जाते हैं. उनके पिता रामजीत राम मांझी एक खेतिहर मजदूर है. जीतन राम मांझी को भी बचपन में जमीन मालिक द्वारा खेतों में कार्य करने लगते है, लेकिन उनके मन में ललक ने उन्हें काबिल बनाया. जीतन राम मांझी की शिक्षा की बात कर रहे है 1962 में उच्च शाला में शिक्षा पूरी करने के उपरांत उन्होंने 1967 में गया कॉलेज से इतिहास विषय से स्नातक की डिग्री हासिल की. 

मांझी के राजनीतिक सफर का आगाज: गरीब परिवार से आने वाले मांझी को 1968 में डाक एवं तार मंत्रालय में लिपिक की नौकरी मिली, लेकिन 12 वर्ष डाक विभाग में नौकरी करने के उपरांत 1980 में छोड़ दिया. जिसके उपरांत कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया और आंदोलन का हिस्सा बन चुके है, जिसमें 'आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा को बुलाएंगे' के नारे बुलंद करने वाले है. 1980 में पहला चुनाव लड़ा और जीतकर मंत्री बने. इसके उपरांत मांझी को अपने राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव का सामना कर रहे है. 1985 में भी दोबारा जीते, लेकिन 1990 में फतेहपुर सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र से उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा है.

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