पूर्व जन्म के चलते कृष्ण को मारने पहुंची थी पूतना, कभी नहीं सुनी होगी ये कथा
पूर्व जन्म के चलते कृष्ण को मारने पहुंची थी पूतना, कभी नहीं सुनी होगी ये कथा
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हर साल मनाया जाने वाला जन्माष्टमी का पर्व इस साल दो दिन 18 और 19 अगस्त को मनाया जा रहा है। जी दरअसल धर्म ग्रंथों के अनुसार, जैसे ही कंस को पता चला कि उसे मारने वाला कहीं और जन्म ले चुका है तो उसने पूतना नाम का राक्षसी को बुलाया और आदेश दिया कि भाद्रपद कृष्ण अष्टमी (Janmashtami 2022) तिथि की रात जितने भी बच्चों ने गोकुल में जन्म लिया, उन सभी का वध कर दो। जी हाँ और पूतना ने ऐसा ही किया, हालाँकि जैसे ही वो श्रीकृष्ण को मारने पहुंची तो नन्हे कान्हा ने उसी का वध कर दिया। यह बात तो हम सभी जानते हैं, लेकिन पूतना पिछले जन्म में कौन थी, इसके बारे में कम हो लोगों को पता है। आज हम आपको बताते हैं पूतना के पूर्व जन्म की कथा.

पूर्व जन्म में राजा बलि की पुत्री थी पूतना - श्रीमद्भागवत के अनुसार, पूतना पिछले जन्म में दैत्यों के राजा बलि की पुत्री थी। राजा बलि महापराक्रमी थे। वे तीनों लोकों पर अधिकार करने के लिए एक महान यज्ञ कर रहे थे। जब इस बात के बारे में देवताओं को पता चला तो वे भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु वामन रूप लेकर राजा बलि के पास पहुंचें। उस समय रत्नमाला भी वहीं थी। भगवान वामन का सुंदर स्वरूप देखकर रत्नमाला की ममता जाग उठी और उसने मन ही मन सोचा कि मेरा भी पुत्र ऐसा ही सुंदर होना चाहिए। भगवान ने रत्नमाला की इच्छा जान ली और मन ही मन उसे ये वरदान भी दे दिया। भगवान वामन ने राजा बलि से तीन पग भूमि मांगकर उनका सबकुछ अपने अधिकार में ले लिया। इस घटना को देखकर रत्न माला काफी क्रोधित हो गई क्योंकि उसके पिता तो कुछ देर पहले तक पूरी धरती के स्वामी थे, अब उनके पास कुछ भी नहीं बचा था।

ये सोचकर रत्न माला ने मन ही मन भगवान वामन को भला-बुरा करने लगी और सोचा कि अगर ऐसा पुत्र मेरा हो तो मैं उसे दूध में विष मिलाकर पिला देती। भगवान वामन ने रत्नमाला की ये इच्छा भी जान ली और इसे भी पूरा होने के वरदान दे दिया। पिछले जन्म में भगवान वामन ने रत्न माला को जो वरदान दिए थे, उसके अनुसार पूतना जब श्रीकृष्ण को मारने पहुंची तो उसने अपने स्तनों पर विष लगा लिया ताकि दूध पीते ही कान्हा की मृत्यु हो जाए, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और श्रीकृष्ण की हाथों उसकी मृत्यु हो गई। इस तरह पिछले जन्म में वामन रूप में जो वरदान विष्णु ने रत्नमाला को दिए थे उसे श्रीकृष्ण अवतार में पूरा किया।

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