एक बार फिर इस्लामिक आतंकवाद ने दुनिया को दहला दिया. गोलियों की बौछार करते हुए आतंकियों ने निहत्थों पर वार किए. एक बार फिर मानवता पर आघात लगाए. इस कृत्य की बांग्लादेश जैसे प्रमुख एशियाई इस्लामिक राष्ट्र ने तक निंदा की, मगर इससे सवाल यह उठने लगा कि आखिर आईएसआईएस का जिन्न फिर से बोतल से बाहर निकल गया. वह आईएसआईएस जिसके बारे में अभी तक कहा जा रहा था कि अपने आका अबू बकर की मौत के बाद यह कमजोर हो जाएगा. मगर यह संगठन दुबारा विश्व के सामने आतंक के दंश लेकर मुंह बाऐं खड़ा है।
आखिर इस्लामिक आतंकवाद फिर से एशिया और योरप में कोहराम मचाने के लिए तैयार है. कुछ भी हो बांग्लादेश में हुए हमले से आतंक का विरोध कर रहे भारत का पक्ष जरूर मजबूत हुआ है. अभी तक अमेरिका, जापान, फ्रांस, श्रीलंका आदि देश इस मसले पर भारत के साथ थे मगर अब बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात आदि देश भारत का इस मसले पर साथ जरूर देेंगे. हालांकि चीन और पाकिस्तान द्वारा किसी तरह का सहयोगात्मक रवैया न रखा जाना भारत के लिए मुश्किलभरा है मगर आतंक को लेकर पाकिस्तान को पहले भी अमेरिकी घुड़की मिलती रही है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान जिस तरह से दबाव में है उससे भारत का पक्ष मजबूत हुआ है अब भारत को इस बात की जरूरत है कि वह हमेशा सबूतों की कमी की बात करने वाले पाकिस्तान से पठानकोट और मुंबई के 26/11 जैसे आतंकी हमलों को लेकर कार्यवाही की बात करे, भारत केवल मांग ही न करे बल्कि पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव के साथ कार्यवाही करे तो आतंकी संगठनों के बढ़ते कदमों को रोका जा सकता है।
बांग्लादेश में लेखकों की हत्या और वहां अल्पसंख्यक हिंदूओं व अन्य समुदायों पर अत्याचार होने को भी पाकिस्तान के रास्ते से फैले आतंक और इस्लामिक आतंक का ही परिचायक कहा जा सकता है. बांग्लादेश में हुए हमले के कारण इस्लामिक आतंकवाद की भयावहता सामने आई है साथ ही यह भी सिद्ध हुआ है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है।
'लव गडकरी'