अलविदा : इन दिलचस्प बातों से हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे करूणानिधि
अलविदा : इन दिलचस्प बातों से हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे करूणानिधि
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दक्षिण भारत की सियासत के सबसे बड़े नेता एम. करूणानिधि आख़िरकार 94 वर्ष की उम्र में हम सभी को अलविदा कह गए. पिछले कई दिनों से बीमार दक्षिण के इस कद्दावर नेता ने चेन्नई के कावेरी अस्पताल में अंतिम सांस ली. 60 साल का राजनीतिक करियर, 5 बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री, 50 फिल्मों के लिए कहानी-संवाद लिखने और 13 बार विधायक रहने वाले करूणानिधि का जीवन काफी प्रभावशील रहा है. आइए जानते है उनके जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी बातों के बारे में जिनके लिए वे हमेशा लोगों के दिलों में अमर रहेंगे...

करूणानिधि की फिल्मों के प्रतिबन्ध ने खोली थी उनकी राजनीति की राह

- एम करूणानिधि का पूरा नाम मुत्तुवेल करुणानिधि था. उनका जन्म 3 जून 1924 को मद्रास प्रेसीडेंसी के तिरुक्कुवलई में हुआ था. 

- राजनीति की तरह ही वे दक्षिण फिल्म जगत में भी छाए रहे. इसी के चलते उनके चाहने वाले उन्हें 'कलाईनार' यानि कि "कला का विद्वान" भी कहते हैं.

- एम करूणानिधि की पकड़ केवल तमिलनाडु तक ही सीमित नही थी, बल्कि वे राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचाने जाते थे. इसी के चलते उन्होंने कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा के साथ गठबंधन किया.

- राजनीति के प्रति उनका गहरा लगावा था. उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत केवल 14 वर्ष की उम्र में ही हो गई थी. 1938 में तिरूवरूर में हिंदी विरोधी प्रदर्शन में वे शामिल हुए थे. 

- एम करूणानिधि को अधिकतर लोग राजनेता के रूप में जानते है. लेकिन आपको इस बात से अवगत करा दे कि दक्षिण फिल्म इंडस्ट्री में भी उनका गहरा योगदान था. उन्होंने करीब 50 फिल्मों के लिए कहानी और संवाद लिखा है. उन्होंने अपनी पहली फिल्म राजकुमारी से लोकप्रियता हासिल की. उन्होंने मरुद नाट्टू इलावरसी, मनामगन, देवकी, पराशक्ति, पनम, तिरुम्बिपार, नाम और मनोहरा जैसी सफल फ़िल्में लिखी है. 

- राजनीति की गहरी समझ रखने वाले एम करूणानिधि ने 5 बार तमिलनाडु की सत्ता पर राज किया है. वे 1969, 1971,1989, 1996 और 2006 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे हैं. कई दशक तक सिनेमा पर अपने साथी रहे एमजी रामचंद्रन और जे जयललिता को भी उन्होंने सत्ता की रेस में पछाड़ दिया था. वे 13 बार विधायक भी रहे हैं. इतना ही नहीं उनकी राजनैतिक समझ का पता इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उन्होंने 60 साल के राजनीतिक करियर में एक बार भी कोई चुनाव नहीं हारा. 

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