प्रेरक प्रसंग - कैंची और सुई  !
प्रेरक प्रसंग - कैंची और सुई !
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इतवार का दिन था और छुटकी के स्कूल की छुट्टी, फिर क्या था सुबह से खेल में मशगूल छुटकी दोपहर बाद खाना खाने के लिये जैसे ही घर आयी माँ ने हाथ मुख धोकर रसोई में आने को कहा | आज छुटकी जानती थी के माँ ने कुछ खास बनाया है| दाल बाटी, आटे का हलवा और बूंदी की कढ़ी पाकर छुटकी के ख़ुशी का ठिकाना न रहा, माँ खाना लगाकर आँगन में ही पुराने कपडे सील रही थी| 

छुटकी खाते खाते बड़े ध्यान से माँ को काम करते हुए देख रही थी | उसने देखा कि उसके माँ कैंची से कपड़े  काटती है, और कैंची को पैर के पास टांग से दबा कर रख देती हैं । फिर सुई से कपडे को सिलती है और सीने के बाद सुई को अपनी आँचल पर लगा देती है|

 जब छुटकी ने यही क्रिया को चार-पाँच बार माँ को करते देखा तो उससे रहा नहीं गया और वो माँ से पूछ बैठी,

छुटकी - आप जब भी कपड़ा काटती  हैं, उसके बाद कैंची को पैर के नीचे दबा देती  हैं, और सुई से कपड़ा सीने के बाद, उसे आँचल पर लगा देती हैं, ऐसा क्यों ? 

 माँ ने जो उत्तर दिया उन दो पंक्तियाँ में मानों उसने ज़िन्दगी का सार समझा दिया -

बेटी कैंची काटने का/अलग करने का काम करती है, और सुई जोड़ने का काम करती है, इसलिये काटने वाले को हमेशा दबाके नीचे रखते है, ताकि बेहद ज़रूरी होने पर ही काम में लिया जा सके | पर जोड़ने वाले की जगह हमेशा ऊपर होती है ताकि कभी हलकी सी भी दरार आने पर फुर्ती से जोड़ लगाया जा सके|

और यही बात हमारी ज़िन्दगी पर भी लागु होती है | इसलिये बेटी अपने व्यवहार से घर परिवार वालो को हमेशा जोड़े रखना, और कोशिश करना के रिश्तों में कभी दरार न पड़े |

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